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सक्षम पर्व अशोकानोकुहतले सश्रीकामुज्झितां वराम् । केनापि पापिनाद्राक्षं तदात्वजातबालिकाम् ॥१०८ अपत्यमनपत्योऽहं स्पृहयालुरहर्निशम् । सुरूपां तामुपादातुं प्रवृत्तोऽस्मि सविस्मयः ॥१०९ तदा सरस्वती व्योग्नि प्रोल्ललासेति सत्वरम् । अस्ति स्वस्तिमये रत्नपुरे रत्नाङ्गदो नृपः ॥११० तस्य रत्नवंतीकुक्षिजातेयं सुतरां सुता । खेचरेणापहृत्यात्र विमुक्ता पितृवैरिणा ॥१११ इत्थं श्रुत्वानपत्यायाः प्रियायास्तामुपानयम् । गुणवत्याख्यया वृद्धा सेयं कृत्रिमपुत्रिका ॥ तदिदानीमुपादास्त्वं मत्सुतां तातहेतवे । इत्युक्तस्तां समादाय जगाम निजपसने ॥११३ विवाहविधिना पित्रे स भक्त्या तामयोजयत् । तामाप्य स सुखी भूतो निः स्वो निधिमिवाद्भुतम्।। तस्याः पराभिधा ख्याता गन्धैर्योजनगन्धिका । तयोः सुतोवराभ्यासो व्यासोऽभूद्वयसनातिग: पापहासनधर्मालोः सभासभ्येश्वरस्थितेः । सुभद्रा भाभिनी तस्य सुभद्रा भद्रभावका।। ११६ सुतास्त्रयः पुनर्व्याससुभद्रयोः शुभाकराः। धृतराष्ट्रस्तथा पाण्डुर्विदुरस्ते बलोद्धताः ॥११७ भरते हरिवर्षाख्ये देशे भोगपुरे बभौ । भोगेन निर्जितं भोगिपुरं येन महात्विषा ॥११८ अथादिदेवनिर्णीतो हरिवंशकुलो महान् । नृपः प्रभजनस्तत्र समासीत्सुखसागरः ॥११९
शत्रुने इस कन्याका हरणकर यहां छोड दिया है । इस प्रकारकी आकाशवाणी सुन पुत्रपुत्रीरहित मेरी स्त्रीके पास वह कन्या मैं ले गया । गुणवती इस नामसे हमने इसको पाला पोसा। यह हमारी मानी हुई पुत्री है । इस लिये इस समय हे कुमार, मेरी इस लडकीको तुम अपने पिताके लिये स्वीकारो" ऐसा वृत्तान्त सुनकर गांगेय अपने पिताके लिये उस कन्याको लेकर अपने घरके प्रति गया ॥ १०७-११३ ॥ गांगेयने भक्तिसे विवाहविधिसे उस कन्याको पितासे जोड दिया । दरिद्री मनुष्य जैसे अद्भुत निधिको पाकर सुखी होता है वैसे गुणवतीको प्राप्त कर राजा सुखी हुआ । उसका दुसरा नाम योजनगंधा था। उसके शरीरका सुगंध दूरतक फैलता था इसलिये उसे योजनगंधा कहते थे । उन दोनोंको व्यसनोंसे रहित, उत्तम शास्त्राभ्यास करनेवाला व्यास नामक पुत्र हुआ । पापोंके नाशक धर्मपर रुचि रखनेवाले, सभा और सभापतिकी मर्यादापालक ऐसे व्यासकी पत्नी सुभद्रा थी। जो शुभविचारवाली और कल्याणकारक थी । इन दोनोंको अर्थात् व्यास राजा और रानी सुभद्राको शुभकायोंके आकरभूत सामर्थ्यवान् धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर ये आधार तीन पुत्र हुए ॥ ११४-११७ ॥
हरिवंशीय राजा सिंहकेतुकी कथा ] इस भरतक्षेत्रमें हरिवर्ष नामक देशमें भोगिपुर नामक नगर था। जिसने अतिशय दीप्तिसे भोगिपुर-धरणेन्द्रका नगर पराजित किया था ॥ ११८ ॥ आदिदेवने जिसकी स्थापना की है. ऐसे हरिवंशमें उत्पन्न हुआ प्रभंजन नामक महापराक्रमी राजा उस नगरमें रहता था, वह सुखसमुद्रमें निमग्न हुआ था। उसकी रानीका नाम मृकण्डू था । वह रूप लावण्यसे अतिशय शोभती थी। उसके स्तन बड़े थे, उसका नितंब सुंदर था। वह
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