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________________ १२३ सप्तम पर्व पादं प्रसार्य पादैकं दीर्घाङ्गो मेरुमूर्धनि । द्वितीयं मानुषादौ च ददौ दीसतपाः पदम् ॥ ६७ तदा सुरासुराः प्राहुः सवीणा नारदादयः । संगीतिगीतनोद्युक्ताः पादौ संहर संहर ||६८ सद्यः प्रसादयामासुर्मुनिं चामरचामराः । तुष्टा घोषासुघोषाख्ये महाघोषां वरस्वरम् ॥६९ वीणां घोषवतीं चान्यां ददुः खगनरेशिनाम् । तथा त्वं याचितो विप्रवरेणापि ममाधुना ॥७० चरणस्य तृतीयस्य नावकाश इति ब्रुवन् । बद्ध्वा बली बलिं विष्णुरुदधे कोपसंगतः ॥ ७१ तदुद्दिष्टो निराकार्षीदुपसर्ग निसर्गतः । बलिर्बलिग्मुनीनां च कुर्वन् रक्षाविधिं वरम् ।।७२ निषेध्याधर्ममात्मीयं वृषं जग्राह ग्राहितः । बलिर्विष्णुर्जगामाशु स्थानं धर्मप्रभावकः ॥ ७३ क्रमेण विक्रमी पद्मनाभो महादिपद्मकः । सुपद्मश्च ततः कीर्तिः सुकीर्तिर्वसुकीर्तिवाक् ॥७४ वासुकिश्च व्यतीतेषु भूपेष्वेवं च भूरिषु । शान्तनुः शान्तियुक्तात्मा कौरवः कौरवाग्रणीः ।।७५ सबकी तत्प्रिया प्रीता सीता वा रामभूर्भुजः । पराशर महीशस्तु तयोः सूनुरभूद्वली ॥७६ 66 तथा दूसरा पात्र मानुषोत्तर पर्वतपर रख दिया ॥ ६६-६७ ॥ तेजस्वी तपस्वी मुनिने उस समय सर्व देव, दानव तथा वीणा हाथमें लिये नारदादिक नृत्य, वाद्य और गायनयुक्त संगीत करते हुए पैरोंको अब संकुचित करनेके लिए बारबार कहने लगे । तथा चामरजातिके चामर - देवोंने मुनीश्वरको तत्काल प्रसन्न किया । उन्होंने सन्तुष्ट होकर मधुरस्वरवाली घोषा, सुघोषा, महाघोषा और घोषवती ये वीणायें विद्याधर राजाओंको दी । विष्णुकुमारने बलिराजाको कहा कि, 'मुझ विप्रश्रेष्ठने तेरे पास आकर याचना की, मेरे तीसरे चरणको अब कहां स्थान है बताओ " ऐसा बोल कर बलवान ऋषीश्वरने बलिको कोपसे बांध दिया और उसको ऊपर उठाया तब विष्णुकुमार मुनिके द्वारा आज्ञा की जानेपर बलिराजाने बिना प्रयास उपसर्गको दूर किया और बलवान् बलिने मुनियोंका रक्षण किया। मुनिराजके निषेध करनेपर बलिने अपना अधर्म छोड दिया और जिनधर्मको ग्रहण किया। इसके अनंतर धर्मप्रभावक विष्णुकुमार मुनि अपने स्थानके प्रति चले गये ॥ ६८-७३ ॥ [ कौरवपाण्डवों के पूर्वजों का चरितकथन ] पद्मरथ राजाके अनंतर कौरववंशमें परा - क्रमी पद्मनाभ, महापद्म, सुपद्म, कीर्ति, सुकीर्ति, वसुकीर्ति, वासुकि इत्यादि अनेक राजा क्रमसे व्यतीत होगये । तदनंतर कौरववंशके कौरवराजाओंमें अग्रणी, शांत स्वभाववाला शान्तनु नामक राजा हुआ ||७४-७५|| रामचन्द्रको सीता जैसी अतिशय प्रिय पत्नी थी वैसे शान्तनुराजाको 'सबकी' नामक पत्नी अतिशय प्रिय थी । इन दोनों को 'पराशर' नामका बलवान् पुत्र हुआ ॥७६॥ [ पराशर का गंगाके साथ विवाह ] रत्नपुर नामक नगर में जयशील जन्दु नामक १ ब ग परासुरमहीशस्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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