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माप्त: पधे
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गुरुणाकाथ भो वत्स वादस्थाने स्थितिं कुरु । निशायामन्यथा घातः संघस्य भविता लघु।। तथा तेन कृते रात्री ते खला हन्तुमुद्यताः । गच्छन्तः पथि तं वीक्ष्य प्रहर्तुं सायुधाः स्थिताः।। पुरदेवतया तेत्र स्तम्भितास्त्रस्तचेतसः । उत्खातोद्भतखङ्गेन कुर्वन्तस्तोरणश्रियम् ।।४८ प्रभाते वीक्ष्य भूपेन ते तथा पुरतोऽखिलाः । चक्रीवत्सु समारोप्य मुण्डयित्वा च मस्तकान् ।। निष्कासितास्ततः पयरथं नागपुरे गताः । विनीता रक्षिता राज्ञा दचा मन्त्रिपदं महत् ।। प्रत्यन्तवासिसंक्षोभे समुद्भतमहाभये । सचिवो विविधोपायैस्तं रिपुं समजीग्रहत् ॥५१ तुष्टेन तेन संदिष्टमिष्टं संयाच्यतामिति । सप्तघस्रमहं कर्तुं राज्यमिच्छामि सदलिः॥ आहेति मोहतस्तेन तथाभ्युपगतं मुदा । दत्तराज्यो बलिदत्ते स्म दानं दानवो यथा ॥५३ अकम्पनोऽथ योगीन्द्रो योगिभिर्योगजुष्टये । वर्षायोगं च जग्राह वारयन्मुनिमण्डलीम् ॥ अभिवादं न वक्तव्यं भवद्भिर्वादिभिः सह । अन्यथानर्थसंपातो भविता भवतामिति ॥५५ बलिर्बलेन तं रुष्टो वृत्या संवृत्य यागिभिः । यज्ञेन तापनं चके तेषां धूम्रध्वजात्मना ।।५६
उनको कहा ॥ ४३-४५ ॥ अकम्पन गुरुने कहा कि हे वत्स, तुम रातमें वादस्थानपर जाकर रहो। अन्यथा संघका नाश शीघ्र होगा, श्रुतसागर मुनिने वैसाही किया। रात्रीमें वे दुष्ट संघको मारनेके लिये उद्युक्त हुए। जाते हुए उन्होंने मार्गमें श्रुतसागर मुनिको देखा। वे उनको मारनेके लिये आयुध लेकर खडे हो गये । कोशसे बाहर निकालकर खडे किये तरवारोंसे तोरणकी शोभा उत्पन्न करनेवाले वे चारों मंत्री नगरदेवताने तत्काल कीलित कर दिये। तब उनका अन्तःकरण अतिशय भयभीत हो गया ॥ ४६-१८॥ प्रातःकाल राजाने देखकर उन मंत्रियोंको गधेपर बैठाकर तथा उनके मस्तक मुंडवाकर नगरसे बाहर निकाल दिया। तदनंतर वे सब मंत्री नागपुर-हस्तिनापुरके पद्मरथ राजाके पास गये। अतिशय विनयभाव दिखानेसे महामंत्रिपद देकर राजाने उनका रक्षण किया। किसी समय म्लेच्छराजाके क्षोभसे राज्यमें बड़ा भय उत्पन्न हुआ। तब अनेक उपायोंसे म्लेच्छराजाको बलि नामक सचिवने पकड लिया। राजा आनंदित हो गया और जो तुम चाहते हो यह मांगो ऐसी आज्ञा मंत्रीको उसने दी। मंत्रीने कहा कि मैं सात दिनतक राज्य करना चाहता हूं। राजाने भी मोहसे उसका वचन मान्य किया। आनंदसे बलिको उसने राज्य दिया। तब बलि याचकोंको कुत्रेरके समान दान देने लगा॥ ४९-५३ ॥ इसी समय अकंपनाचार्य हस्तिनापुरमें अपने संघके साथ आये थे । वर्षायोगके वे दिन थे । अकम्पन योगिराजने योगियों के साथ ध्यानसेवनके लिये वर्षायोग धारण किया। और सर्व मुनियोंको वादियोंके साथ वाद करनेका निषेध किया। और कहा यदि वाद करोगे तो आपके ऊपर अनर्थ उत्पन्न होगा ॥ ५४-५५॥ बलि राजाने सैन्यरूपी बाढसे अकंपनाचार्यका संघ घेर लिया। अनंतर अग्निही है स्वरूप जिसका ऐसे यज्ञके द्वारा याज्ञिक ब्राह्मणोंसे सर्व मुनिसंघको बलि उपसर्ग करने लगा ॥५६॥ विष्णुकुमार मुनि मुनियोंपर
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