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पाण्डवपुराणम् अरनाथसुतः श्रीमानरविन्दो नृपो मतः । सुचारश्च ततः शूरो भूपः पयरथो रथी ॥३६ ततो मेथरथस्तस्य जाया पद्मावती श्रुता । विष्णुपबरथौ पुत्रौ तयोरास्तां महाबलौ ॥३७ व्यघो मेघरथो धीमान्प्रावाजीद्विष्णुना सह । पश्चात्परथो राज्यमलंचके कृपाङ्कुरः ॥३८ अवन्तीविषये रम्योजयिन्यां भूपतिर्महान् । श्रीवर्मा मंत्रिणस्तस्य चत्वारः प्रथमो बली ॥ बृहस्पतिश्च प्रह्लादो नमुचिर्वादकोविदाः । वाडवा वादकण्डूयाविडम्बितमनोरथाः ॥४० एकदाकम्पनस्तत्रागत्य संधैः स्थितो वने । वादे निवारितास्तेन भाविज्ञानेन सद्रचा ॥४१ तद्वन्दनार्थ गच्छन्तं संघ वीक्ष्य नृपो जगौ । किमर्थं याति लोकोऽयं वन्दनार्थ मुनेरिति ।। मन्त्रिभिर्भूपतिर्भक्त्या वन्दितुं तान् गतस्तदा । वन्दितैस्तैनरेन्द्रेण नाशीदत्ता शुभप्रदा ।। बलीवर्दा इमे नूनमित्युक्त्वा मन्त्रिणो गताः । नृपैर्मार्गे मुनि बालं ददृशुः श्रुतसागरम् ।। अनड्डास्तरुणश्चायमित्याकर्ण्य निराकृताः । मुनिना ते सुवादेन सोऽपि गत्वागदीद्गुरुम् ॥४५
वह एक लक्ष्मी-संपन्न राजा हुआ। उसके अनंतर सुचार नामक राजा हुआ। उसके पश्चात् शूर नामक राजा हुआ। उसके अनंतर रथमें बैठकर हजारों योद्धाओंके साथ युद्ध करनेवाला रथी पद्मरथ नामक राजा हुआ। अनंतर मेधरथ राजा हुआ। उसकी रानीका नाम पद्मावती था । इन दोनोंको महासामर्थ्यशाली विष्णु और पद्मरथ नामके दो पुत्र हुए। कुछ कालतक मेघरथने राज्य पालन किया। एक दिन उसका मन राज्यसे विरक्त हुआ। निष्पाप मेघरथ राजाने विष्णुकुमारके साथ दीक्षा ग्रहण की । इसके अनंतर दयाका अंकुर जिसकी मनोभूमिमें प्रगट हुआ है ऐसा पद्मरथ राज्य करने लगा ॥३६-३८ ॥ अवन्ति अर्थात् मालवा प्रान्तके उज्जयिनी नामक नगरमें श्रीवर्मा नामक बडा राजा राज्य करता था। उसके बलि, बृहस्पति, प्रह्लाद और नमुचि ये चार मंत्री वाद करनेमें निपुण थे । वे चारों मंत्री ब्राह्मण थे और वादकी कंडूसे उनके मनोरथ पीडित हुए थे अर्थात् जिस किसी विद्वानको देख लिया, उसके साथ वे वाद करनेको तयार हो जाते थे ॥ ३९४०॥ किसी समय उज्जयिनीके बनमें अकम्पनाचार्य अपने संघके साथ आये। तेजस्वी आचार्यने अपने भाविज्ञानसे जानकर संघको किसीके साथ वाद न करनेकी आज्ञा की। मुनियोंकी वन्दनाके लिये जानेवाले लोगोंका समूह देखकर राजाने मंत्रीको पूछा कि ये लोग किसलिये जारहे हैं ? मंत्रीने कहा 'महाराज, ये मुनिके बन्दनार्थ जा रहे हैं ' ॥ ४१-४२ ॥ राजा मन्त्रियोंको साथ लेकर भक्तिसे मुनियोंकी वन्दना करने के लिये गया। राजाने मुनियोंको वन्दन किया परन्तु उन्होंने शुभदायक आशीर्वाद नहीं दिया। ये मुनि बैलके समान हैं ' ऐसा बोलकर मन्त्री वहांसे चले गये। राजाके साथ जाते हुए उन्होंने बालमुनि श्रुतसागरको देखा । 'यह तरुण बैल है ' ऐसा वाक्य मंत्रीके मुखसे मुनिने सुना और उसने उनके साथ वाद कर उनको पराजित किया । तदनंतर श्रुतसागरमुनि अकंपनाचार्यके पास गये और सारा हाल उन्होंने
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