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सप्तमं पर्ष त्रिविधावगमोद्भासी जिनः संस्नापितः सुरैः । मेरो प्राप्तारसनामा संप्राप्तो यौवनं कमात्॥६ त्रिंशबापतनूत्सेधश्वारुचामीकरद्युतिः । चतुर्भिरधिकाशीतिसहस्राब्दायुरूर्जितः ।।७।। स कन्यानां सहस्त्रैश्च पाणिपीडनमातवान् । प्राप्तराज्योदयो धीमान् सुरकोटिनमस्कृतः ॥८ चक्ररत्ने समुत्पमे चक्रे चक्रेश्वरो नतान् । नृपतीन् ननु द्वात्रिंशत्सहस्रसंख्यकान्कृती ॥ ९ अष्टादशसुकोटीनां घोटकानां घटाश्रितः । चतुर्भिरधिकाशीतिसुलक्षानेकपाधिपः ॥ १० . तावतां रथवृन्दानां पप्रथे नाथतां पृथुम् । द्वात्रिंशतां सहस्राणां देशानां प्रभुतामितः ।। ११ पण्णवतिसहस्राणां नारीणां भोगभोजकः । द्वासप्ततिसहस्राणि पुराणि पाति पावनः ।। १२ नवाग्रनवतिद्रोणसहस्रप्रभुतां गतः । पत्तनान्यष्टचत्वारिंशत्सहस्राणि चास्य वै ॥ १३ खेटानां च सहस्राणि षोडशैवाभवन्विभोः । कोटिषण्णवतिग्रामानण्यं स गतवान्महान्।।१४ पद्पश्चाशत्समुद्रान्तीपपालनतत्परः । चतुर्दशसहस्राणां वाहनानां हि रक्षकः ॥१५.. द्वात्रिंशत्सुसहस्राणां नाटकानां निरीक्षकः । स्थालीनां कोटिसंख्यानां भाजनानां च भाजनम् ।। त्रिकोटिगोकुलैः कोटिहलैः सोऽभूत्परिग्रही । कुक्षिवासाः शतान्यस्य सप्ताभूवन्नरेशितुः ॥१७
दशीके दिन रानीने उत्तम पुत्रको जन्म दिया। देवोंने तीन ज्ञानोंसे शोभायमान प्रभको मेरू पर्वतपर ले जाकर क्षीरसागरके जलसे स्नान कराया। और उनका ‘अर जिन' ऐसा शुभ नाम रखा । प्रभु क्रमसे युवा हो गये। प्रभुका शरीर तीस धनुष्य प्रमाण ऊंचा था । वह सुंदर सुवर्णकी कान्तिवाला था। प्रभु की आयु चौरासी हजार वर्षोंकी थी ॥५-७॥ प्रभुका विवाह हजारों कन्याओंके साथ हुआ। प्रभुको राज्य-वैभव प्राप्त हुआ उनको कोटयवधि देव नमस्कार करते थे ॥ ८॥ प्रभुकी आयुधशालामें चक्ररत्न उत्पन्न हुआ। उसके साहाय्यसे पुण्यवान् प्रभुने बत्तीस हजार राजाओंको नम्र किया-वश किया ॥९॥ प्रभुके अठारह कोटि घोडे थे, तथा प्रभु चौरासी लक्ष हाथियोंके स्वामी थे और उतनेही रथोंके वे नाथ थे। बत्तीस हजार देशोंपर उनका प्रभुत्व था । प्रभु अरनाथ छियानवै हजार स्त्रियोंके भोगको भोगते थे । पवित्र प्रभु बहत्तर हजार नगरोंके रक्षण कर्ता थे। निन्यानवे हजार द्रोण और अडतालीस हजार पत्तनोंके अधिपति थे । ( जो नदी और समुद्रके किनारे पर बसे हो उन गांवोंको द्रोण कहते हैं। और रत्नोंकी खानीसे युक्त गांवको पत्तन कहते हैं। ) ॥ १०-१३ ॥ प्रभुके खेट नामके गांव सोलह हजार थे । ( नदी और पर्वतसे घिरे हुए गांवको खेट कहते हैं । ) वे महास्वामी छियानवे कोटि गांवोंके प्रभु थे । समुद्रके भीतरके छप्पन अन्तर्वीपोंके रक्षणमें वे प्रभु तत्पर थे। चौदहजार वाहन नामक गांव उनके अधीन थे । (पर्वतके ऊपर वसे हुए गांवको वाहन कहते हैं ) ॥ १४-१५ ॥ वे प्रभु बत्तीस हजार . नाटकोंको देखते थे। उनके यहां एक कोटि थालियाँ-अन्न पकाने के पात्र थे। तीन कोटि गायें और एक कोटि हल थे । मनुष्यों के अधिपति प्रभु सातसौ कुक्षिवासोंके स्वामी थे ॥ १६-१७॥
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