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________________ ११६ पाण्डवपुराणम् इति भट्टारकश्रीशुभचन्द्रप्रणीते ब्रह्मश्रीपालसाहाय्यसापेक्षे श्रीपाण्डवपुराणे महा भारत-नाग्नि श्रीकुन्धुनाथपुराणप्ररूपणं नाम षष्ठं पर्व ॥ ६ ॥ सप्तमं पर्व । अरे विजितकारि सारचक्रेशचर्चितम् । सारं सर्वगुणाधारं नौमि तीर्थकरं वरम् ॥१ एवं भूपेष्वतीतेषु तत्र राजा सुदर्शनः । सुदर्शनः प्रिया तस्य मित्रसेनाभवत्सती ॥ २ वसुधारादिभिर्मान्या दृष्टषोडशस्खमिका । फाल्गुने सा तृतीयायां सिते गर्भ दधे शुभम्।। ३ स्वर्गावतारकल्याणं सुपर्वाणश्चतुर्विधाः । कुर्वाणाः परमोत्साहं नत्वा तत्पितरौ ययुः ।।४ अदभ्ररूणसंभारा भारत्यक्ता नृपप्रिया । मार्गशीर्षे सितेऽसूत चतुर्दश्यां सुतं परम् ॥ ५ मोक्षमार्ग के जो पथिक हैं, जो तीर्थकर, चक्रवर्ती और शोभनेवाले सौभाग्यके स्वामी है अर्थात् कामदेव हैं, तथा जो संसाररूपी अरण्यको अग्निके समान हैं वे कुन्थुनाथ प्रभु आपकी पापसे रक्षा करें ॥ ५०-५१ ॥ ___ ब्रह्म श्रीपालने जिसकी रचनामें सहायता दी है ऐसे श्रीशुभचन्द्र-भट्टारकविरचित महाभारत नामक पाण्डव---पुराणमें श्रीकुन्थुनाथ तीर्थकरके पुराणका वर्णन करनेवाला छठा पर्व समाप्त हुआ। [ सप्तम पर्व ] उत्तम-भक्तियुक्त चक्रवर्तियोंके द्वारा जो पूजे गये हैं, जो सर्व अनन्तज्ञानादि गुणोंके आश्रय हैं, कर्मशत्रुओंको जिन्होंने जीता है तथा जो मुक्तिश्रीके सर्वोत्तम वर हैं, ऐसे अरनाथ तीर्थकरकी मैं स्तुति करता हूं ॥१॥ [ अरनाथचरित ] इस प्रकार अनेक राजाओंके हो चुकीपर कुरुवंशमें सुदर्शन नामक राजा हुआ। वह नामसे सुदर्शन था और अर्थसे भी। अर्थात् सुदर्शन शंकादि-दोषरहित सम्यग्दर्शनका धारक था। उसकी रानीका नाम मित्रसेना था। वह सती-पतिव्रता थी। कुबेरने रानीके अङ्गणमें रत्नवृष्ट्यादिक करके उसका आदर किया। एक दिन उसने सोलह स्वप्न देखे तथा फाल्गुण शुक्ल तृतीयाके दिन उसने गर्भ धारण किया ॥२-३॥ बडे उत्साहसे प्रभुका स्वर्गावतारका उत्सव-अर्थात् गर्भावतार कल्याणविधि करनेवाले भवनवासी, व्य॑तर, ज्योतिष्क और स्वर्गवासी देव जिनमाता और जिनपिताको नमस्कार कर अपने स्थानके प्रति गये ।। ४ ।। यद्यपि गर्भका भार अधिक था तोभी रानीको वह भार नहीं के समान था। मार्गशीर्ष शक्क चतु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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