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पंचमं पर्व
१११ ऊर्ध्वग्रैवेयकाधोविमाने सौमनसे च तौ । एकोनत्रिंशदभ्यायुर्धरौ जातौ सुरोत्तमौ ॥ ५२ मृत्वा वज्रायुधः श्रीमान् द्वीपेऽत्र प्राग्विदेहके । देशे च पुष्कलावत्या पुर्यस्ति पुण्डरीकिणी।। पतिर्धनरथस्तस्याः प्रिया तस्य मनोहरा । तयोर्मेघरथः सूनुर्जातो जातमहोत्सवः ॥५४ अहमिन्द्रः परस्तस्य सूनुदृढरथाह्वयः । मनोरमाभवो जातो ववृधाते च तौ सुतौ ॥ ५५ जनको ज्येष्टपुत्रस्य प्रियमित्रामनोरमे । वल्लभे विदधेयस्य सुमति चित्तवल्लभाम् ॥५६ आत्मजः प्रियमित्रायां समभूमन्दिवर्धनः । वरसेनः सुमत्यां च सूनुढरथस्य च ।। ५७ एवं स्वपुत्रपौत्राधैर्युतो धनरथो नृपः । रेजे मेरुरिवात्यर्थ ताराचन्द्रदिवाकरैः ॥ ५८ देवो घनरथो मुक्त्वा राज्यं मेघरथे सुते । दिदीक्षे प्राप्तकल्याणः स्वयमेव खयंगुरुः ॥ ५९ उच्छेद्य घातिकर्माणि स प्राप केवलोद्गमम् । अथ मेघरथो देवरमणोद्यानमाविशत् ।। ६० स्वदेवीभिर्विहृत्यास्थाचन्द्रकान्तशिलातले। खेचरः कश्चन व्योनि गच्छंस्तस्योपरि स्थितः।।६१
उसनेभी वर्षप्रतिमा-योग धारण किया । जिनदीक्षा जिनको प्रिय है, इंद्रियोंको क्लेश देकर निग्रह करनेवाले ऐसे उन दो श्रेष्ठ मुनीश्वरोंने योग समाप्त होनेपर वैभार पर्वतपर आकर प्राणत्याग किया । मरणोत्तर ऊर्ध्वग्रैवेयकके सौमनस नामक अधोविमानमें उनतीस सागर आयुको धारण करनेवाले अहमिन्द्रदेव हुए। ।। ५०-५२ ॥
[ मेवरथ और दृढरथका चरित्र ] इस जम्बूद्वीपके पूर्व विदेह क्षेत्रके पुष्कलावती देशमें पुण्डरीकिणी नगरीका अधिपति घनरथ राजा था । उस की प्रिय रानी मनोहरा थी। वज्रायुध अहमिन्द्र सौमनस विमानसे चयकर उन दोनोंको मेघरथ नामक पुत्र हुआ, तब राजा घनरथने पुत्रजन्मका बडा उत्सव किया । सहस्रायुध अहमिन्द्रभी सौमनस विमानसे चयकर घनरथ राजाकी दुसरी पत्नी मनोरमाको दृढरथ नामका पुत्र हुआ । वे दोनों पुत्र बढने लगे ॥ ५३-५५ ॥ बनरथ राजाने ज्येष्ठ पुत्रका-मेघरथका विवाह प्रियमित्रा और मनोरमा इन दो राजकन्याओंके साथ किया । उन दोनोंपर मेघरथ राजाका अतिशय प्रेम था । दृढरथ पुत्रका विवाह सुमतिके साथ हुआ, वह दृढ़रथके चित्तको आतिशय प्रिय थी। मेघरथको प्रियमित्रासे नंदिवर्धन नामक पुत्र हुआ और दृढरथको सुमतिसे वरसेन नामक पुत्र हुआ। इस प्रकार पुत्रपौत्रादिकोंस घनरथ राजा तारा, चंद्र और दिवाकर-सूर्यसे युक्त मेरूके समान अतिशय शोभने लगा ॥ ५६–५८ ।। धनरथ राजाने मेघरथ पुत्रपर राज्यस्थापन किया । वे दीक्षाकल्याणको प्राप्त हुए । स्वयं दीक्षा लेकर स्वयं गुरु होगये । दीक्षाके अनंतर उन्होंने घातिकर्मोंका नाश किया और केवलज्ञान प्राप्त . कर लिया ॥ ५९-६०॥
[ विद्याधरीकी पतिभिक्षा ] किसी समय मेघरथ राजा देवरमण नामक उद्यानमें गया । वहां अपनी देवियोंके साथ बिहार कर चन्द्रकान्त शिलापर बैठ गया । उस समय आकाशमें कोई
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