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पाण्डवपुराणम्
अच्युताधीश्वरो जज्ञेऽनन्तवीर्यस्तु नारकः । धरणेन्द्रात्पितुः प्राप्य सम्यक्त्वं दृढमानसः ||४ संख्यातवर्षसंजीवी प्रच्युत्य प्रासदद्भुवम् । भरतेऽस्मिन्खेचराद्रयुदकच्छ्रेणौ व्योमवल्लभे ।। ५ मेघवाहन राजासीतत्प्रिया मेघमालिनी । तत्सुतो मेघनादाख्यः सोऽभूच्छ्रेणीद्वयाधिपः ।। ६ प्रज्ञप्तिं साधयन्वियां मन्दरे नन्दने वने । दरीदृष्टोऽच्युतेशेन बोधितो लब्धबोधकः ॥ ७ प्राव्राज्य नन्दनाख्याद्रौ प्रतिमायोगमासदत् । अश्वग्रीवानुजो भ्रान्त्वा सुकण्ठोऽभूद्भवार्णवे ॥८ असुरत्वं समापन वीक्ष्यैनं मुनिमुत्तमम् । व्यधत्त बहुधा क्रोधादुपसर्गे न सोऽचलत् ।। ९ सोढोपसर्गः संन्यस्य सोऽच्युतेऽगात्प्रतीन्द्रताम् । मघोना सह संप्राप सातमच्युतसंभवम् ।। १ प्रच्युत्याच्युतनाथः प्राग्द्वीपेऽत्र प्राविदेह के । देशे च मङ्गलावत्यां नगरे रत्नसंचये ।। ११ राइयां कनकमालायां राज्ञः क्षेमंकरस्य च । वज्रायुधाभिधो श्रीमानौरस्योऽभूत्सुलक्षणः ।। १२ आधानप्रीतिसुप्रीतिष्टतिमोदक्रियान्वितः । वदनेन्दुप्रभाजालसंध्वस्ततिमिरोत्करः ।। १३ नवं वयो दधानोऽसौ राज्यलक्ष्म्या परिष्कृतः । प्रतीन्द्रस्तत्सुतो जज्ञे सहस्रायुधसंज्ञकः ॥ १४
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( पूर्व जन्म में जो नारायणका पिता स्तिमितसागर राजा था।) सम्यग्दर्शन प्राप्त कर, वह चित्तवाला वह नारकी नरकमें संख्यात वर्षतक जीकरके अनन्तर वहांसे निकलकर इस भूतलपर आया । इस भरतक्षेत्र में विजयार्द्धकी उत्तरश्रेणीमें मेघवल्लभ नगरका अधिपति मेघवाहन नामका राजा था। उसकी प्रिय पत्नी मेघमालिनी थी। इन दोनोंका यह नारकी मेघनाद नामक पुत्र हुआ। वह दोनों श्रेणियोंका अधिपति हुआ || ४-६ ॥
[ मेघनाद को अच्युतस्वर्ग में प्रतीन्द्रपद - प्राप्ति | किसी समय मंदरपर्वतके नन्दनवनमें प्रज्ञप्ति विद्याको सिद्ध करते हुए मेघनाद विद्याधरको अच्युतेन्द्रने देखकर उपदेश दिया । उपदेश पाकर मेघनादने दीक्षा ली और नन्दन नामक पर्वतपर प्रतिमायोग धारण किया । अवीव प्रतिनारायणका छोटा भाई सुकण्ठ संसारसमुद्र में भ्रमण कर असुर हुआ । उसने इन मुनिराजको देखकर क्रोधसे नानाविध उपसर्ग किये परंतु वे उनसे विचलित नहीं हुए । उपसर्ग सहन करके संन्यास से उन्होंने अच्युतस्वर्ग में प्रतीन्द्रपद पा लिया । तथा अच्युतेन्द्र के साथ अच्युतस्वर्ग में उत्पन्न हुए सुखोंका अनुभव लेने लगे ॥ ७-१० ॥ अच्युतस्वर्गका स्वामी अच्युतेन्द्र अच्युतस्त्रर्गसे प्रथम चय करके जम्बूद्वीप के पूर्वविदेह क्षेत्रस्थ मंगलायती देशमें रत्नसंचय नामक नगरीमें क्षेमंकर राजाकी रानी कनकमालाका वज्रायुध नामक विद्वान् सुलक्षण पुत्र हुआ । अपने मुखरूपी चन्द्रमा कान्तिसमूहसे अंधकारसमूहको दूर करनेवाला कुमार आधान, प्रीति, सुप्रीति, श्रुति, मोद इत्यादिक संस्कारोंसे युक्त था । अर्थात् श्रीक्षेमंकर पिताने ये संस्कार, जो कि जैनवसूचक हैं, उसपर किये थे । क्रमसे वह नवीन वयसे अर्थात यौवनसे युक्त तथा राजलक्ष्मी अलंकृत हुआ । अच्युत स्वर्गका प्रतीन्द्र वज्रायुधका सहस्रायुव नामक पुत्र हुआ || ११ - १४ || साक्षात् श्री के समान सुन्दर ऐसी
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