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________________ चतुर्थ पर्व खगापराजितानन्तवीर्यगेहे न शोभते । तच्छोभते भवद्गहे रकान्यालयवन्मणिः ॥ २६३ श्रुत्वासो प्राहिणोद्दतं सोपहारं स्फुरद्गुणम् । गत्वा दूतः प्रभाकर्यां वीक्ष्य तौ नरपुङ्गवौ ।।२६४ मुक्त्वोपायनमाचख्यौ युधां पाति खगाधिराट् । श्रीमता तेन देवेन प्रेषितोऽहं युवां प्रति।।२६५ याचितं नर्तकीयुग्मं दातव्यं प्रीतये ततः । निशम्येदं तकौ दतं प्रहित्याहूय मन्त्रिणः।।२६६ किं कार्यमिति पृच्छन्तौ स्थितौ तत्पुण्ययोगतः । तृतीयभवविद्याश्च संप्राप्ताः खं निरूप्य च ।। विपक्षक्षयसंलक्ष्याः स्थितास्तत्कार्यकारिकाः । निधाय मन्त्रिणं तत्र नर्तकीवेषधारिणौ ॥२६८ निर्गतौ सह दूतेन तौ प्राप्तौ शिवमन्दिरम् । विधीयमानं तन्नृत्यं नृपो वीक्ष्य स्फुरद्गुणम्।।२६९ विस्मितः शिक्षितुं ताभ्यां समदात्कनकाश्रियम् । तामादाय यथायोग्यं गीतनृत्तकलाविदम् ।। अनन्तवीर्यसंरक्तां चक्रतुस्ते सुभाविनीम् । तद्रक्तां तां समादाय नर्तक्यौ जग्मतुर्दिवि ॥२७१ श्रुत्वाथ खेचरो वार्ता प्रेषयामास सद्भटान् । बलिना तेन युद्धेन भङ्गं नीताःक्षणान्तरे।।२७२ क्यों कि चूडामणि पात्रों में रहना मुझसे सहा नहीं जाता है। हे विद्याधराधीश, दीनके घरमें रत्नके समान अपराजित और अनंतवीर्यके घरमें वे शोभा नहीं पाती हैं। आपके घरहीमें उनकी शोभा है" ॥ २५६-२६३ ॥ नारदके वचन सुनकर दमितारि राजाने गुणोंसे स्फुरायमान ऐसे एक दूतको उपहारके साथ भेज दिया। दूत प्रभाकरी नगरीमें गया। वहां उसने नरश्रेष्ठ अपराजित और अनंतवीर्यको देखा। उनके आगे भेटकी चीजें रखकर इस प्रकार कहा “ दमितारि विद्याधराधीश, आप दोनोंका रक्षण करते हैं। लक्ष्मीसंपन्न उस राजाने आपके प्रति मुझे दो नर्तकियोंकी याचना करने के लिये भेजा है। आप प्रेमवृद्धि होनेके लिये दमितारि महाराजको उन दोनों नर्तकियोंको दे दीजिये। यह भाषण सुनकर दूतको उन्होंने बाहर भेज दिया। मंत्रियोंको बुलाकर पूछा, कि इस समय कौनसा उपाय करना चाहिये और वे बैठ गये। इतनेमें उनके पास तीसरे भवकी विद्यायें प्राप्त होगई। उन्होंने “ हम शत्रुओंका नाश करनेमें समर्थ हैं, आपका कार्य करनेवाली हैं ". इस तरह अपना स्वरूप कहा। तब उन दोनों राजाओंने मंत्रीको प्रभाकरी नगरके रक्षणके लिये स्थापन किया और आप दोनों नर्तकियोंका वेष धारण कर दूतके साथ चलकर शिवमंदिर नगरको आये । राजसभामें गुणोंसे शोभायमान नृत्य शुरू किया, राजाको नृत्य देखकर आश्चर्य हुआ। राजाने नृत्यका अभ्यास करानेके लिये कनकश्रीको उनके हाथमें सौंप दिया। उसको उन्होंने गीतकला और नृत्यकलामें निपुण किया। उन दोनों नर्तकियोंने शुभ विचार करनेवाली सुन्दर राजकन्याको अनंतवीर्यमें आसक्त कर दिया। तदनंतर अनुरक्त हुई कनकश्रीको लेकर वे दोनों नर्तकियां आकाशमें चली गयीं ॥ २६४-७१ ॥ [अनन्तवीर्यके हस्तसे दमितारिका निधन ] विद्याधर दमितारिने यह वार्ता सुनकर अच्छे पराक्रमी वीरोंको भेजा। परंतु बलवान् अपराजितने शीघ्रही युद्धमें उन भटोंका पराजय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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