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________________ पाण्डवपुराणम् स्वयंप्रभजिनस्यान्ते प्रायासीत्संयम नृपः । धरणेन्द्रर्द्धिमालोक्य तत्पदाप्तिनिदानवान्।।२५१ मृत्वा धरणेशितां प्राप सुखनं धिनिदानकम् । अपराजितभूपालोऽनन्तवीर्यो महामनाः।२५२ इन्द्रप्रतीन्द्रवत्तौ च दधतुश्च वसुंधराम् । एकदा बर्बरी ख्याता नटी चान्या चिलातिका ।। प्राभृतीकृत्य केनापि प्रेषिते. ते सुखावहे । भूपौ तौ भूरिभूमीशभूषितप्रान्तभूतलौ ॥२५४ तयोर्नृत्यं स्थिती द्रष्टुमायासोन्नारदस्तदा । नृत्यासंगात्कुमाराभ्यां न दृष्टः स विधेः सुतः ।। जाज्वलत्कोपसंतप्तः शुचिचण्डांशुवत्तपन् । दमितारिसभां प्राप्य नारदो देहिदुःखदः ॥२५६ तत्र विष्टरसन्निष्ठं विशिष्टं शिष्टसेवितम् । गरिष्ठमिष्टसंदिष्टसेवं तं वीक्ष्य खाङ्गणात् ।। २५७ अवतीर्याशिषं दत्वा स्थिते तस्मिन्खगाधिपः। तमभ्युत्थाननत्यायैः संमान्यास्थापयत्पदे ॥२५८ दमितारिरवोचत्तं भवन्तो भक्तवत्सलाः । भव्या भवभ्रमं भेत्तुं भान्तो भूतविभूतिदाः ।। २५९ किं काय हेतुना केनागमनं ब्रूत वः प्रभो । इत्याकर्ण्य वचोऽवादीनारदः श्रुणु खेचर।।२६० त्वदर्थ सारभूतानि वस्तून्यालोकयन्भमन् । दृष्ट्वा च नर्तकीयुग्मं रम्भोर्वशीसमं महत्।। २६१ अस्थानस्थं भवद्योग्यमनिष्टं सोढुमक्षमः । आयातोऽहं कथं सोढः पादे चूडामणिः स्थितः।।२६२ मरकर वह धरणेन्द्र हुआ। यह निदान सुखका नाश करनेवाला है अतः इसे धिक्कार है ॥२५०-२५१।। [ नारदका आगमन ] उदारचित्त अपराजित और अनंतवीर्य ये दोनों राजा इंद्रप्रतीन्द्रके समान पृथ्वीका रक्षण करने लगे। किसी समय एक राजाने बर्वरी और चिलातिका नामक दो सुखदायक नर्तकियां भेटके रूपमें भेज दी। समीप स्थानमें बैठे हुए अनेक राजाओंसे भूषित वे दोनों भूपाल उन नर्तकियोंका नृत्य देखनेके लिये बैठे थे। उस समय नारद सभामें आगये। परंतु नत्य देखने में आसक्त होनेसे दोनों कुमारोंने ब्रह्मदेवके पुत्र--नारदको नहीं देखा ॥ २५२-५५ ॥ अतिशय प्रज्वलित कोपसे संतप्त, आषाढमासके सूर्यके समान तपनेवाले, कलह उत्पन्न कर प्राणियोंको दुःख देनेवाले, नारद दमितारिराजाकी सभामें आये। सजनोंमे सेवित, अभीष्टसिद्धिके लिये अर्थीलोगोंसे सेवनीय ऐमे महापुरुष दमितारिको सिंहासनपर बैठा हुआ देखकर आकाशाङ्गणसे नारद उतरे; तथा आशीर्वाद देकर सभामें खडे हो गये। विद्याधरोंके राजा दमितारिने सिंहासनसे ऊठकर नमस्कारदिकोंसे नारदका सम्मानकर योग्य सिंहासन पर बैठाया। दमितारि राजाने उनको कहा.---- " हे प्रभो आप भक्तोंपर दया धारण करते हैं, भक्तवत्सल हैं, भव्य हैं, संसारभ्रमणको नष्ट करनेवाले हैं तथा जीवोंको वैभव देनेवाले हैं। हे प्रभो, कुछ कार्य कहिये, किस हेतुसे आपका आगमन हुआ है, कहिये ? " दमितारिका भाषण सुनकर नारद कहने लगे.-... " हे दमितारि राजन् , मैं आपके लिये सारभूत वस्तुओंको देखता हुआ फिरता हूं। अपराजित राजाकी सभामें रंभा और उर्वशीके समान सुन्दर दो नर्तकियां आपके योग्य देग्वीं परंतु अपराजितराजाके सभामें उनका रहना मैं सहन नहीं करता हूं इस लिये तुम्हारे पास आया हूं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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