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चतुर्थ पर्व तं राजपूजितं स्वाढ्यं श्रुत्वा च धरणीजटः । निःस्वत्वहानयेज्यासीदुःखी कपिलसंनिधिम् ।। कपिलो दूरतो वीक्ष्य समुत्थायानमत्तकम् । जनकोऽयं जनान्वक्ति मम सोऽपि तथावदत् ।। धनवस्त्रादिकं लात्वा तुष्टोऽसौ निःखनाशतः । एकदा सत्यभामा तं पूजयित्वा धनादिभिः।। भक्त्या परोक्षतोआक्षीत्पुत्रोऽयं वा न ते वद । समादाय धनं विप्रः प्रकथ्य तद्विचेष्टितम्।। अगाद्देशान्तरं शीघ्रं धनं किं न करोति वै । अथ सा शरणं श्रान्ता गता श्रीषेणभूपतेः।।२०२ स्त्री सिंहनन्दिता यस्य नन्दिता चापरा प्रिया । इन्द्रोपेन्द्राख्यया ख्याती तयोः पुत्रौ महाप्रभौ।। सत्यभामा नृपस्याग्रे वृत्तं भर्तृसमुद्भवम् । अवीवदऋपो ज्ञात्वा नगरातं निराकरोत् ॥२०४ श्रीषेणोऽपि कदाचिच्च चारणद्वन्द्वमागतम् । ननामामितगत्याख्यारिंजयाख्यं खवेश्मनि ॥ ताभ्यां दत्त्वान्नदानं स समुपायं महाशुभम् । देवीभ्यामनुमोदेन दानस्य सत्यभामया।।२०६ भोगभूम्याः परं चायुरवापुस्ते शुभाः शुभम् । कौशाम्ब्यामथ विख्यातो महाबलमहीपतिः।।
तत्पर कपिलको रत्नपुर निवासी सत्यकि नामक ब्राह्मणने जंबू नामक पत्नीसे उत्पन्न हुई सत्यभामा कन्या विधिस परणाई । वह दासीपुत्र कपिल रत्नपुरके राजाके द्वारा सम्मानित और श्रीमंतभी हुआ। यह सुनकर दारिद्यनाशके लिये दुःखी धरणीजट उसके पास आगया" ॥१९७-१९८॥ कपिलने दूरसे देखकर ऊठ कर उसे नमस्कार किया। तथा लोगोंको ये मेरे पिताजी हैं ऐसा कहा। धरणीजटनेभी यह मेरा पुत्र है ऐसा लोगोंको कहा। कपिलसे धन लेकर दारिद्यनाशसे धरणीजट आनंदित हुआ । किसी समय सत्यभामाने धनादिकके द्वारा उसकी पूजा की अर्थात् उसको बहुत धन दिया और कपिलके परोक्षमें भक्तिपूर्वक पूछा कि मेरा पति कपिल आपका पुत्र है या नहीं । सत्यभामासे धन लेकर उसे कपिलकी सब कथा सुनाई और वह ब्राह्मण शीघ्र वहांसे चला गया । योग्यही है, कि धन क्या क्या नहीं करता ? इधर कपिलका दासीपुत्रत्व ज्ञात होनेसे दुःग्वित हुई सत्यभामा श्रीषेण राजाको शरण गई ॥ १९९-२०२ ॥ राजा श्रीषेण रत्नपुरका स्वामी था । उसकी पहली पत्नीका नाम सिंहनंदिता और दुसरीका नाम नंदिता था। उन दोनोंको इन्द्र और उपेन्द्र नामके दो तेजस्वी पुत्र थे ॥२०३ ॥ सत्यभामाने राजाके आगे अपने पतिकी कथा निवेदन की, राजाने सब हाल जानकर कपिलको नगरसे निकाल दिया । श्रीषेण राजाने किसी समय गृहमें आये हुए अमितगति और अरिंजय नामक दो चारणमुनियोंको वन्दन किया। तथा उनको आहारदान दिया। सिंहनंदिता. नंदिता और सत्यभामाने दानका अनुमोदन दिया। राजाको आहारदानसे महापुण्यबंध हुआ। राजा, उसकी दो स्त्रियाँ और सत्यभामा इनको भोगभूमीके उत्कृष्ट आयुका बंध हुआ। श्रीषेण राजाके पुत्रादिकोंने अपने परिणामोंके अनुसार शुभाशुभ कर्मबंध किया ॥२०४-२०६॥ कौशाम्बी नगरीमें महाबल नामक राजा था। उसकी रानीका नाम श्रीमति और पुत्रीका नाम श्रीकान्ता था । वह सुंदर और शुभविचारवाली थी। राजा महाबलने श्रीषेण
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