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पाण्डवपुराणम् रसायनादिपाकाख्यस्तोयं पिशित सदा । दत्ते स्म चैकदा कुम्भभूपाय नरमांसके ॥१२० दत्ते सुसंस्कृत खाये भूपस्तत्स्वादलोलुपः । ब्रूते स्मेदं त्वया तेनानेतव्यं च तथा कृतम्।।१२१ लोका ज्ञात्वेति संचिन्त्य दुशेश्यं नरभक्षकः। निःकाश्यो नगरातूर्ण स त्यक्तः सचिवादिभिः।। कदाचित्पाचकं हत्वा साधयित्वा स राक्षसम् । पूर्वोक्तं भक्षयामास प्रजा बनाम तत्पुरम् ।।२३ संत्रस्ताः सकलाः पौराः संत्यज्य तत्पुरं तदा । कुम्भकारकटं कृत्वा पुरं तत्रेति संस्थितिम् ।। व्यधुर्मीता नरं चैकं तथा च शकटौदनम् । खादान्यमानवानां हि रक्षणं कुरु राक्षस ॥१२५ तत्रैव वाडवचण्डकौशिकस्तत्प्रिया परा । सोमश्रीभूतमाराध्य मौण्ड्यकौशिकसत्सुतम् ॥१२६ लेभे कुम्भस्य भोज्याय दातुं तं शकटस्थितम् । नीयमानं च कुम्भेन सह वीक्ष्य च खादितुम्।। दण्डहस्तैस्तदा भूताः कुम्भ निर्भस्य तं बिले । क्षिप्त शयुर्जगालाशु द्विजं कर्मविपाकतः।।१२८ विजयागुहायां हि कथं निक्षिप्यते नृपः । श्रुत्वा तद्वचनं पथ्यं जगाद मतिसागरः ॥१२९ वज्रपातस्तु भूपस्य प्रोक्तो नैमित्तिकेन न । किंतु पोदननाथस्य चातोऽन्यः क्षिप्यतामिति ।।
होकर उसने रसोइयाको आज्ञा दी कि तू यही नरमांस हमेशा लाकर मुझे दे । उस रसोईयाने वैसा ही किया । लोगोंने यह दुष्ट राजा नरभक्षक है, इसे नगरसे शीघ्र निकाल देना चाहिये, ऐसा विचार किया। मंत्री आदिकोंने राजाका त्याग किया ॥ ११७-२२ ॥ किसी समय राजाने रसो-- ईयाको मारकर श्मशानमें रहनवाले राक्षसको वश किया और ग्राममें प्रवेश कर लोगोंको खाने लगा। सब नगरवासी डर गये। उन्होंने उस समय उस नगरको छोड दिया और कुंभकारकट नामक नगर बनाकर वे वहां रहने लगे । प्रतिदिन एक मनुष्य और एक गाडी अन्न भक्षण कर तथा अन्य मनुष्योंका रक्षण कर इसतरह कहकर नियम बांध दिया ॥१२३-१२५॥ उसी नगरमें चंडकौशिक नामक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नीका नाम सोमश्री था। सोमश्रीने भूतोंकी आराधना कर प्राप्त हुए पुत्रका नाम 'मौंड्यकौशिक ' रखा था। कुंभके भोजनके लिये गाडीमें बैठा हुआ मौंड्यकौशिक भेजा गया । खानेके लिये ले जानेवाले कुंभके साथ मौंड्यकौशिकको देखकर भूतोंने हाथमें लाठिया लेकर कुंभकी निर्भर्त्सना की और उस ब्राह्मणको उन्होंने बिलमें रखा परन्तु उसमें रहनेवाला अजगर कर्मोदयसे उसको निगल गया ॥ १२६-१२८ । इस लिये राजाको विजयाईकी गुहामें कैसे रक्खा जाये । बुद्धिसागरका यह हितकर कथानक सुनकर मतिसागर मंत्री इस प्रकार बोलने लगा । राजाके ऊपर वज्रपात होगा ऐसा तो नैमित्तिकने नहीं कहा है; परन्तु पोदनपुरका जो नाथ है उसके ऊपर होगा। अतः राजाको हटाकर दुसरे व्यक्तिको राज्यपर बैठाना चाहिये । युक्तिनिपुण सर्व मंत्री उसकी योग्य बुद्धिकी प्रशंसा करने लगे । उन
१ स म स्थाप्यतामिति ।
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