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________________ ७९ चतुर्थ पर्व मद्वराटकवृन्दं चेत्यमत्रे रोषतोऽक्षिपत् । वज्रपातस्तदा मूनि पोदनेशस्य निश्चितम् ॥११० रञ्जितस्फटिके तत्र तपनाभीषुसंनिधिम् । भार्याक्षिप्तकरक्षालजलधारां च पश्यता ॥१११ निश्चित्यात्मयथालाभं तोषाभिषवपूर्वकम् । अयं चामोघजिह्वाख्यस्तवादेशो मया कृतः॥११२ श्रुत्वेति तं विसासौ भूपश्चिन्तासमाकुलः । आहूय मन्त्रिणोऽपृच्छदत्तमेतद्भयावहम् ॥११३ श्रुत्वैतत्सुमतिः प्राह त्वां समुद्रजलान्तरे । संस्थाप्य लोहमञ्जूषामध्ये मुश्चे च रक्षितुम्॥११४ सुबुद्धिरिति तच्छ्रत्वा बभाषे तत्र संभयम् । मत्स्यजं विजयार्धस्य निदधामो गुहान्तरे।।११५ तदाकर्ण्य वचोऽवादीत्सचिवो बुद्धिसागरः । अर्थाख्यानं प्रसिद्धार्थ कथ्यमानं निशम्यताम्।।११६ परिवाट सोमनामा च वसन्सिहपुरे खलः । वादार्थी जिनदासेन निर्जितो मृतिमाप च।।११७ बभूव महिषो भारचिरवाहवशीकृतः । उपेक्षितो विशक्तिश्च जातजातिस्मृतिस्तदा ॥ ११८ बद्धवैरो मृतोऽप्यासीच्छ्मशाने राक्षसः खलः। कुम्भभीमौनृपौ तत्र कुंभस्य पाचकः पटुः॥११९ यह सब दखा । और उससे ऐसा निश्चय किया, कि मेरे पात्रमें कौडियां फेंक दी उससे पोदनपुरके स्वामीके मस्तकपर वज्रपात होगा। स्फटिकपात्रके ऊपर जलधारा डालनेसे मुझको आनंदसे अभिषेकपूर्वक धनलाभ होगा । हे युवराज मैंने अमोघजिह्वनामक यह आदेश किया है । अर्थात् मैंने जो भवितव्य कहा है वह व्यर्थ नहीं होगा ॥ १०३-११२ ॥ युवराजने उसका सब कथन सुना और उसका विसर्जन किया । राजा चिन्तातुर हुआ और मंत्रियोंको बुलाकर इस भयदायक वृत्तके विषयमें उनकी सलाह पूछी ॥ ११३ ।। सुमति नामक मंत्रीने सुनकर कहा कि हे राजन् हम समुद्रके पानीके बीचमें लोहेके संदुकमें रक्षणके लिये आपको रक्खेंगे। सुमति मंत्रीका भाषण सुनकर सुबुद्धि मंत्रिने कहा समुदमें मगर, मत्स्य आदि जलचरप्राणियोंका भय है । अत: यह उपाय योग्य नहीं है । हे राजन् हम आपको विजयाई पर्वतकी गुहामें रखेंगे । सुबुद्धि मंत्रीके वचन सुनकर बुद्धिसागर मंत्रीने कहा कि मैं इस विषयमें एक प्रसिद्ध अभिप्रायवाली कहानी आपको सुनाता हूं आप सुनिए ॥ ११४-११६ ॥ सिंहपुरमें सोम नामका वाद करनेवाला एक दृष्ट तपस्वी रहता था। जिन दास नामक विद्वानने उसको वादमें हराया। वह कुछ कालके बाद मरकर भैंसा हुआ । दीर्घकालतक भार बहनेसे वह कृश होगया। उसके स्वामीने उसकी बिलकुल उपेक्षा करदी । उसे जातिस्मरण होगया । वह मनमें वैर धारण कर मर गया और श्मशानमें दुष्ट राक्षस होगया । सिंहपुरमें कुंभ और भीम नामक दो राजा थे। कुंभराजाका रसायनपाक नामका चतुर रसोइया था। वह कुंभराजाको हमेशा उसके भोगयोग्य मांस खानेको देता था । एक दिन उसने उसको मनुष्यका मांस अच्छीतरह पकाकर खानेको दिया । उसके स्वादमें लुब्ध १ प स प्रस्फुटिके । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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