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पाण्डवपुराणम् वीरो विजयभद्राख्यो जयसेनास्य वल्लभा । अन्यदा स पतद्वीक्ष्य फलं च विपिने गतः ॥३३ वैराग्यं खं गुरुं प्राप्य पिहितानवसंज्ञकम् । चतुःसहस्रभूपालैः संयम संयमी ययौ ॥३४ ।। मृत्वा माहेन्द्रकल्पेऽगाद्विमाने चक्रके ततः । सप्तसागरमाजीव्य च्युत्वावसुततां गतः ॥३५ प्रयास्यति स निवोणमिति तत्र गतेन तत् । मया श्रुतं ततस्तस्मै देया कन्या प्रयत्नतः॥३६ ज्योतिर्मालां ग्रहीष्यामस्तत्पुत्रीमर्ककीर्तये । इति श्रुत्वा वचस्तस्य सुमतिः सचिवोऽवदत्।।३७ कन्याया याचकाः सन्ति खगाः सर्वे सहस्रशः। कन्यायां ते प्रदत्तायामस्मै यास्यन्ति वैरिताम् ।। श्रेयान्स्वयंवरस्तस्मादित्युक्त्वा विरराम सः। अनुमन्य तदेवाशु सर्वे ते तेन प्रेषिताः ॥३९ संभिन्नश्रोतनामानं पुराणार्थप्रवेदिनम् । अप्राक्षीस समाहूय स्वयंप्रभायै वरं परम् ॥४० सोऽवोचच्छृणु शास्त्रेन श्रुतं तत्कथ्यते मया। सुरम्यविषये ख्याते पोदनाख्ये पुरे परे ।।४१ नृपः प्रजापतिस्तस्य जाया भद्रा मृगावती । भद्रायां विजयो जज्ञे मृगावत्यास्त्रिपृष्ठकः ॥४२ भवितारौ बलकृष्णौ श्रेयस्तीर्थे महाबलौ । हत्वाश्वग्रीवशत्रु चाद्यौ त्रिखण्डपती च तौ ॥४३ त्रिपृष्टस्तु भवं भ्रान्त्वा भावी तीर्थकरोऽन्तिमः । अतः कन्या त्रिष्टाय देया त्रिखण्डभोगिने।। कन्या तस्य मनो हृत्वा भूयात्कल्याणभागिनी । भवतो भवितानेन सर्वविद्याधरेशिता ॥४५
जाकर चार हजार राजाओंके साथ संयम धारण किया। आयुष्यके अन्तमें विजयभद्रमुनि महेन्द्रकल्पके चक्रकविमानमें उत्पन्न हुए। वहां सात सागरतक सुखसे रहकर वहांसे च्युत होकर, हे राजन्, वह देव विद्युत्प्रभ नामक तुम्हारा पुत्र हुआ है। और वह कर्मक्षय करके मुक्ति प्राप्त कर लेगा । हे राजन् , सिद्धकूटपर गये हुए मैंने यह बात सुनी है। इसलिये विद्युत्प्रभको प्रयत्नपूर्वक कन्या देना योग्य है। उस मेघवाहनकी पुत्री ज्योतिर्मालाको हम अर्ककीर्तिके लिये ग्रहण करेंगे। इस प्रकार श्रुतसागर मंत्रीका वचन सुनकर सुमति नामक मंत्रीने कहा-हे राजन् , विद्युत्प्रभको कन्या देनेपर हजारो विद्याधर शत्रु बनेंगे इसलिये स्वयंवर करनाही अच्छा है । इस प्रकार बोलकर वह मंत्री मौनसे बैठा। राजा ज्वलनजटीने उसकी बात मानी और सभा विसर्जन की। सर्व मंत्री स्वस्थानोंको चले गये। अनंतर राजाने पुराणार्थीका ज्ञाता सम्भिन्न श्रोता नामक मंत्रीको बुलाकर पूछा कि स्वयम्प्रभाका वर कौन होगा? उसने कहा राजन् शास्त्र में जो मैने मुना है वह कहता हूं सुनो। सुरम्य नामक प्रसिद्ध देशमें पोदनपुर नामक सुन्दर शहर है। वहां के प्रजापति राजाको भद्रा और मृगावती नामक दो रानियां हैं। भद्रा रानीसे विजय और मृगावती रानीसे त्रिपृष्टक ऐसे दो पुत्र हुए हैं। श्रेयान् तीर्थकरके तीर्थमें ये दोनो पुत्र महाबली प्रथम बलभद्र और नारायण होंगे। अश्वग्रीवको युद्धमें मारकर वे पहिले त्रिखण्डाधिपति होंगे । त्रिपृष्ट तो संसारमें भ्रमण कर भावी अन्तिम तीर्थकर होनेवाले हैं। इसलिये त्रिखण्डको भोगनेबारे त्रिपृष्टको कन्या देना योग्य है। तथा यह कन्या उसका मन हरण कर कल्याणयुक्त
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