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चतुर्थे पर्व
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इति तस्य वचो धृत्वा चित्तेऽसौ तमपूजयत् । इन्द्राख्यदूतमाहूय लेखप्राभृतसंयुतम् ||४६ प्राहिणोच्छिक्षया युक्तं भूपः प्रजापतिं प्रति । जयगुप्तात्पुरा ज्ञातं निमित्तज्ञाच्चिरात्स्फुटम् ||४७ स्वयंप्रभापतिर्भावी त्रिपृष्ठ इति भूभुजा । दूतोऽथ राजसदनं स प्रविष्टः सभालये ॥ ४८ योग्यासने स्थितस्तस्मै दत्तवान्वरप्राभृतम् । दूतः प्रोवाच विनयान्नृपं प्रति कृतादरः ॥४९ स्वयंप्रभाख्यया लक्ष्म्या त्रिपृष्ठो त्रियतामिति । शुश्राव सकलं वृत्तं वाचयित्वा च वाचिकम् ।। प्रतिप्राभृतकं दत्वा तैं प्रपूज्य वचोहरम् । तथेति प्रतिपद्यासौ विससर्ज प्रजापतिः ॥ ५१ गत्वा स सत्वरं दूतो रथनूपुरभूमिपम् । प्रणम्य सर्वकार्यस्य सिद्धिं युक्त्या व्यजिज्ञपत् ॥५२ विभूत्या नगरं प्राप्तं विद्येश स प्रजापतिः । गत्वा सम्मुखमानीयास्थापयद्योग मण्डपे || ५३ विवाहोचितकार्येण ददौ तस्मै स्वयंप्रभाम् । सिंहाहितार्क्ष्यविद्याश्च खगः साधयितुं ददौ ॥ ५४ अश्वग्रीव पुरेऽभूवन्नुत्पातास्त्रिविधाः परे । अभूतपूर्वांस्तान्दृष्ट्वा जना भीतिमगुस्तदा ॥ ५५ शतविन्दुं निमित्तज्ञमश्वग्रीवः समाह्वयत् । किमेतदिति संपृष्ठे स ब्रूते स्म च तत्फलम् ||५६
होगी और आपको भी सर्व विद्याधरोंका स्वामित्व प्राप्त होगा ।। ३८-४५ ॥ राजा चलनजटीने उसके वचन मनमें धारण किये। उसका उसने आदर किया। अनन्तर राजाने इन्द्र नामक दूतको बुलाकर उसको लेख और भेंट सौप दी। और कहने योग्य बातें कह कर उसे राजाने प्रजापति राजाके पास भेज दिया । राजा ज्वलनजटीने जयगुप्त नामक निमित्तज्ञानीसे पहिलेही सुना था कि स्वयम्प्रभाका भावी पति त्रिपृष्ट होगा। इसके अनंतर उस दूतने राजप्रासाद में प्रवेश किया । सभामें योग्य आसनपर बैठकर प्रजापति महाराजको भेटके पदार्थ अर्पण किये और आदरयुक्त होकर विनयसे कहा कि स्वयम्प्रभारूनी लक्ष्मीकेद्वारा त्रिपृष्ट घरा जावे। राजा प्रजापतिने सम्पूर्ण वृत्त सुना तथा सन्देशपत्र भी पढ लिया। उसने भी ज्वलनजटीके प्रति भेट देकर और दूतका आदर सत्कार कर हम स्वयम्प्रभाको त्रिपृष्ठके लिये पसन्द करते हैं ऐसा कह कर दूतको भेज दिया ॥ ४६ -- ५१ ।। वहां सत्वर निकलकर रथनूपुरके राजाके पास अर्थात् ज्वलनजीके पास आकर नमस्कार करके दूत युक्तिसे कहा कि सर्व कार्यकी सिद्धि हुई है ।। ५२ ।। अनंतर ज्वलनजटी अपने वैभवसे पोदनपुरको आगये । प्रजापति राजाने सम्मुख जाकर स्वागत किया और उनको लाकर योग्य मण्डपमें उनकी स्थापना की । विद्याधरेश ज्वलनजटीने विवाह के योग्य सर्व कार्य करके त्रिपृष्ठको स्वयंप्रभा दी । तथा सिंहवाहिनी, नागवाहिनी और गरुडवाहिनी ये तीन विद्यायें त्रिपृष्टको साधने के लिये दीं ।। ५३-५४ ।। उधर अश्वग्रीवके नगरमें- अलकापुरीमें तीन प्रकारके उत्पात ( दिग्दाह, उल्कापात, और भूकम्प ) होने लगे । ऐसे उत्पात पहिले कभी नहीं हुए थे । उनको देखकर लोगोंको भय होने लगा। उस समय अश्वग्रीवने शतबिन्दु नामक निमित्तज्ञानीको बुलाकर पूछा कि यह क्या है ? तब उसने उनका फल बताया ॥ ५५-५६ ॥
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