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________________ चतुर्थ पर्ष ७१ तस्मै संपूर्णराज्याय कन्या देया सुखाप्तये । सुश्रुतोक्तं श्रुतं श्रुत्वा बभाषे च बहुश्रुतः ॥२२ युक्तमुक्तं पुनः किंवश्वग्रीवश्च वयोऽधिकः । तस्मै दत्ता सुता नित्यं यतः स्याद्भोगवर्जिता ॥२३ तदुक्तम्। आभिजात्यमरोगित्वं वयः शीलं श्रुतं वपुः । लक्ष्मीः पक्षः परीवारो वरे नव गुणाः स्मृताः ॥२४ ततोऽन्यं वरमन्विष्य कथयामि नराधिप । येन स्पष्टसुदृष्टेन शिष्टास्तिष्ठन्ति पुष्टये ॥२५ पुरे खवल्लभे सिंहरथो मेघपुरे नृपः । कुशेशयस्थचित्रपुरेऽरिंजयभूपतिः ॥२६ अश्वद्रङ्गे हेमरथो रत्नपुरे धनंजयः । एतेष्वन्यतमायेयं देया कन्या शुभावहा ॥२७ श्रुत्वा वचः शुभं तस्य प्रोवाच श्रुतसागरः । कन्यावरो वरः कश्चित्कथ्यते श्रूयतां लघु ॥२८ द्र) सुरेन्द्रकान्तारे उदश्रेणिनिवासिनि । मेघवाहनभूपस्य प्रियासीन्मेघमालिनी ॥२९ विद्युत्प्रभस्तयोः पुत्रो ज्योतिर्माला परा सुता । सिद्धकूटं गतो मेघवाहनस्तत्र दृष्टवान् ॥३० चारणं वरधर्माख्यं नत्वा स श्रुतवान्वृषम् । स्वसूनोः प्राक्तने पृष्टे भवे प्रोवाच चारणः॥३१ प्राग्विदेहेऽस्ति विषयो द्वारोऽत्र वत्सकावती । प्रभाकरी पुरी राज्ञो नन्दनस्य च नन्दनः ॥३२ प्रकार सुश्रुतने अपना अभिप्राय कहा। उसे सुनकर बहुश्रुत नामक मंत्रीने कहा ॥ १९-२२ ।। कि सुश्रुत मंत्रीने जो कहा वह योग्य है; परंतु अश्वग्रीव वयसे अधिक है। उसे अपनी कन्या देनेपर वह सुखोपभोगसे वंचित रहेगी। कहाभी है, कि वरमें सत्कुलमें उत्पत्ति, रोगरहितपना, तारुण्य, शील, विद्वत्ता, पुष्टशरीर, लक्ष्मी, पक्ष और परीवार ये नौगुण होने चाहिए। अश्वग्रीव वयसे अधिक होनेसे उसको कन्या नहीं देनी चाहिये । इसलिये अन्यवर की तलाश कर हे राजन् मैं खुलासा करूंगा । स्पष्टरीतीसे अवलोकन करनेसे-विचार करनेसे अपने विषयकी पुष्टि होती है। और विद्वान् लोक अपने विषयकी पुष्टीके लिये होते हैं ॥ २३-२५ ॥ हे राजन् । गगनवल्लभ नगरका सिंहरय, मेघपुरका पद्मरथ, चित्रपुरका अरिंजय, अश्वपुरका हेमरथ, रत्नपुरका धनंजय, इन राजाओंमेंसे किमीएकको यह कल्याण करनेवाली कन्या देनी चाहिये । बहुश्रुत मंत्रीका भाषण सुनकर श्रुतसागर नामक मंत्रीने कहा कि, मैं एक श्रेष्ठ वरके विषयमें थोडासा कहता हूं आप सुनिये ॥ २६-२८ ॥ विजयार्धपर्वतकी उत्तरश्रेणीके सुरेन्द्रकान्तार नामक नगरमें मेघवाहन राजा राज्य करता है। उसकी रानी मेघमालिनी नामकी है। इन दोनोंको विद्युत्प्रभ नामक पुत्र और ज्योतिर्माला नामकी कन्या है। किसी समय मेघवाहन राजा सिद्धकूटपर गया था। वहा उसने वरधर्मनामक चारण मुनिको देखा । वंदनकर उनसे धर्मका स्वरूप सुन लिया। अपने पुत्रका पूर्व भव पूछनेपर चारणमुनीने कहा, कि इस द्वीपमें पूर्वविदेहके वत्सकावती देशमें प्रभाकरी नगरीका राजा नंदन था। उसके पुत्रका नाम विजयभद्र था। विजयभद्रकी प्रियपत्नी जयसेना थी। किसी समय पेडसे फलको गिरते हुए देखकर उसे वैराग्य हुआ। असने वनमें पिहितास्रव नामक गुरुके पास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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