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पाण्डवपुराणम् मध्ये भरतमाभाति विजया? महाचलः । तदवाच्या पुरं श्रेण्या स्थनू पुरसंज्ञकम् ॥११ ज्वलनादिजटी तस्य पतिर्विद्याधराग्रणीः । वायुवेगाभवत्तस्य वायुवेगा सुभामिनी ॥१२ अर्ककीर्तिस्तयोः सूनुः स्वकीर्त्या व्याप्तविष्टपः । स्वयंप्रभा सुताचासीलक्ष्मीरिव सुशोभया॥१३ अथान्येधुर्जगन्नन्दनाभिनन्दनयोगिनी । मनोहरवने ज्ञात्वा स्थितौ स वन्दितुं गतः ॥१४ वन्दित्वा धर्ममाकर्ण्य सम्यग्दर्शनमाददे । चारणी स पुनर्नत्वा प्रत्येत्य प्राविशत्पुरम् ॥१५ खयंप्रभा समादाय धर्म तत्रैकदा मुदा । पर्वोपवासिनी क्षीणा जिनानभ्यर्च्य भक्तितः ॥१६ तत्पादद्वन्द्वसंश्लिष्टपुष्पशेषां समर्पयत् । पित्रे स तां समावक्ष्यि यौवनोन्नतिशालिनीम् ॥१७ कस्मै देया सुचिन्त्येति प्रायन्मन्त्रिणोऽखिलान् । प्रस्तुतार्थे नृपेणोक्ते सुश्रुतः प्राह सुश्रुती॥१८ अथोत्तरमहाश्रेण्यामलकापुरि भूपतिः । बर्हिग्रीवः प्रिया नीलाञ्जना तस्य तयोः मुताः ॥१९ अश्वग्रीवो नीलकण्ठो वज्रकण्ठो महाबलः । अश्वग्रीवस्य कनकचित्रादेवी तयोः सुताः ॥२० शतानि पञ्च परमा मन्त्र्यस्य हरिश्मश्रुकः । शतबिन्दुर्निमित्तज्ञस्त्रिखण्ड भरतेशितुः ॥२१
भरतक्षेत्रके मध्यमें विजयार्द्धनामका बडा पर्वत है। उसके दक्षिण श्रेणी में रथनपूर नामक नगर है। विद्याधरोंका अगुआ ज्वलन जटी नामक राजा उसका स्वामी था। उसकी पत्नी वायुके समान वेगवाली वायुवेगा नामकी थी। इन दोनोंको अपनी कीर्तिसे जगत् को व्यापनेवाला अर्ककीर्ति नामक पुत्र था, और लक्ष्मीके समान सुन्दर स्वयंप्रभा नामकी एक कन्या थी ॥११-१३।। किसी समय मनोहरवनमें जगन्नन्दन और अभिनन्दन ये दो मुनिराज आये हैं ऐसा जानकर ज्वलनजटी राजा उनकी वन्दनाके लिये गया । उनको वन्दन करके उनसे धर्मका स्वरूप राजाने सुनकर सम्यग्दर्शन ग्रहण किया । और पुनः उन चारणार्षिको नमस्कार कर लौटकर अपने नगरमें प्रवेश किया ॥ १४-१५ ॥
[स्वयंप्रभाका स्वयंवरविधान ] किसी समय स्वयंप्रभाकन्याने आनंदसे उन मुनियोंके पास अणुव्रत रूप धर्म का स्वीकार किया। वह पर्वोपवाससे क्षीण हुई थी। उसने जिनेश्वरोंकी भक्तिसे पूजा कर उनके चरणयुगलोंपरकी पुष्पशेषा पिताको दी। राजाने यौवनके उदयसे शोभनेवाली कन्याको देखकर विचार किया। और सर्व मंत्रियोंको बुलाकर पूछा कि किसके साथ इसका विवाह करना चाहिये। तब सुश्रुतनामक विद्वान् मंत्री, कहने लगा ॥ १६-१८ ॥ विजया पर्वतकी उत्तर महाश्रेणीकी अलकानगरीमें राजा मयूरग्रीव राज्य करता था। उसकी नीलांजना नामकी रानी थी। उन दोनोंको अश्वग्रीव. नलकण्ठ, बज्रकण्ठ, महावल ये पुत्र हुए। अश्वग्रीवकी कनकचित्रा नामक रानी थी। उन दोनोंको वैभवशाली पांचसौ पुत्र हुए। अश्वग्रीव त्रिखंड भरतक्षेत्रका अधिपति हैं उसके मंत्रीका नाम हरिश्मश्रु और निमित्तज्ञानीका नाम शतबिन्दु है। त्रिखण्ड भरतके आधिपति अश्वग्रीवको अपनी कन्या सुम्वके लिये देना चाहिये । इस
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