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तृतीयं पर्व
अथासौ पुण्डरीकियां भीमो भयविमुक्तधीः । भावयन्भावनां भव्यो भवभ्रमणभीतधीः॥२४८ अधःकरणसत्कृत्या प्रापूर्वकरणोद्यतः। कृत्वानिवृत्तिकरणं कृन्तति स्म स्वकिल्बिषम् ॥२४९ क्षायिकं दर्शनं लब्ध्वा चारित्रं क्षायिकं पुनः । विनौषधनसद्वायुर्घातिसंघातघातकृत् ॥२५० लब्ध्वा केवलसज्ज्ञानमघातिक्षयतोऽगमत् । भीमो भीतिविमुक्तात्मा मोक्षं सौख्यमयं परम् ॥ आवामपि तदा नाथ वन्दनायै गतौ लघु । इदं श्रुत्वा गतौ वीक्ष्य त्रिदिवं त्रिदशाश्चितम् ॥२५२ आवां ततः समुत्पन्नौ भारते भरताग्रणीः । सोमात्मजो भवाञ्जज्ञे जयो जयविराजितः ॥२५३ अकम्पितः कृपोपेतः कम्पितारातिमण्डलः। कम्रः कम्प्रं परं प्रीत्या हापयन्मात्यकम्पनः॥२५४ तत उत्पत्तिमात्मीयां प्रतीहि परमेश्वर । भवान्प्रभावती खेटामुक्त्वा मच्छोमुपागतः॥२५५ पारापतभवोत्पन्नं रतिवेगं स्वपक्षिणम् । स्मृत्वा चोक्त्वा गता मूर्छामहं होछिदाविदा।।२५६ एवं क्रीडाकरौ कम्रौ ब्रीडावारविराजितौ । दम्पतित्वमितावावां जातौ जातिस्मरान्वितौ ॥२५७
लगे। अनंतर क्षायिक सम्यग्दर्शनको प्राप्त कर उन्होंने क्षायिक चारित्रको प्राप्त कर लिया विनममूहरूपी मेघोंका नाश करनेमें वायुके समान उस मुनिराजने संपूर्ण घातिकका घात किया । उनको केवलज्ञान प्राप्त हुआ। इसके अनंतर उनके अधाति कर्मोकाभी नाश हुआ और वे भीम मुनि संसारभीतिसे रहित होकर पुण्डरीकिणी नगरमें मुक्त होगये । उनको अक्षय मोक्ष सौख्य प्राप्त हुआ ॥ २४८-२५२ ॥ हे नाथ, भीममुनि मुक्त होगये हैं इस बातको सुनकर हम दोनों भी शीघ्रही उनके वन्दनार्थ गये थे । उनका दर्शन कर देवोंसे आदरणीय स्वर्गको गये । तदनंतर हम दोनों भरतक्षेत्रके आर्यखण्डमें उत्पन्न हुए। हे नाथ, आप सोमप्रभ राजाके भरताग्रणी कौरववंशके प्रमुख पुरुष जयसे विराजित जयकुमार नामसे प्रसिद्ध हैं । तथा हे नाथ, जो धीर, कृपालु, शत्रुमण्डलको कंपित करनेवाले, नम्र, तथा भयसे कांपनेवाले जनोंका कंप प्रेमसे नष्ट करनेवाले अकम्पन महाराज शोभते हैं, उनसे मेरा जन्म हुआ है, सो आप जाने । 'हा, हे प्रभावती विद्याधरी ' बोलकर आप मूञ्छित होगये, और मैं कबूतरके भवमें मेरा पति हुए रतिवर कबूतरका स्मरण करके 'हे रतिवर तूं कहां है ' बोलकर मूछित होगई । यह कौटिल्यका-कपटका नाश करनेवाला मेरा ज्ञान है। अर्थात् जो जातिस्मरणसे मुझे ज्ञात हुआ है वह सब मायारहित मैंने आप लोगोंके सन्निध स्पष्ट कर दिया है। इस प्रकार क्रीडा करनेवाले लज्जारूपी अपार समुद्रसे भरे हुए, हम दोनों दंपतीत्वको प्राप्त होकर अत्र जातिस्मरणसे युक्त हो गये और हम दोनों यहा पैदा हुए हैं । इस प्रकार सुलोचनाने कहा । जयकुमार अपनी पत्नीके वचनोंसे आनंदित हो गये । योग्यही है कि, स्त्रीके भाषणसे कौन आनंदित नहीं होता है ? इस प्रकार आनंदसे भोगोंको भोगते हुए वे काल व्यतीत करने लगे। विद्याधरभवमें जो 'अनेक विद्यायें उनको प्राप्त हुई थीं वे विद्यायें इस समय भी उनको प्राप्त हुई । विद्याके सामर्थ्य से
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