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तृतीयं पर्व रतिवेगाचरी जाता रतिषणा कपोतिका | पारापतद्वयं तत्र तिष्ठत्तद्गहसंभवात् ।।२०३ तण्डुलादीश्वरचित्रं सुखं भेजे भवार्थदम् । कदाचिच्छ्रेष्ठिनो गेहे चारणद्वयमागमत् ॥२०४ आगतं तद्युगं वीक्ष्य दम्पती तौ मुदा हृदा । तदास्थापयतां भावादाहारार्थ कृतोद्यमी ।।२०५ कपोतमिथुनं तावअङ्घाचारणयोर्द्वयम् । विलोक्य परिस्पृश्यात्र पक्षस्तत्पदमानमत् ॥२०६ तदृष्टमात्रविज्ञातप्राग्भवं तत्समीपताम् । प्राप्तं कपोतमिथुनं तदानं पूर्वजं स्मरत् ॥२०७ तत्र दानानुमोदेन समुपाय॑ वृषं वरम् । भिक्षायै तौ कपोतौ च प्रामान्तरमुपागतौ ॥२०८ भवदेवचरेणानुबद्धवरेण पापिना । मार्जारेणोत्थकोपेन मारितौ तौ कदाचन ॥२०९ तद्देशविजयस्यार्धदक्षिणश्रेणिसंश्रिते । गान्धारविषये शीरवत्यभूनगरी परा ॥२१० तच्छास्तादित्यगत्याख्यस्तस्यासीच शशिप्रभा । सुदेवी तत्सुतः पारापतो हिरण्यवर्मका२११ तस्मिन्नेवोत्तरश्रेण्यां गौरीदेशेऽभवत्पुरे । राजा भोगपुरे वायुरथो विद्याधराधिपः ॥२१२ तस्य स्वयंप्रभा राज्या रतिषणा प्रभावती । जाता यौवनसक्रान्तां दृष्टा कन्यां प्रभावतीम्।।२१३ कस्मै देयेयमित्याख्यत्खगेशो मन्त्रिणस्तदा। सर्वे संमन्त्र्य मन्त्रीशाः स्वयंवरविधि जगुः॥२१४ आकारिताः क्षणात्खेटा अटिता मण्डपे परे । कन्यार्थिनस्तयाकस्माद्वबिरे न निमित्ततः।।२१५ पितृभ्यां तत्समालोक्य सा पृष्टावीवदत्स्फुटम् । यो जयेद्गतियुद्धे मां मालां तस्य गले व्यधाम्।।
अपने पक्षोंसे उनके चरणोंको स्पर्श कर वन्दन करने लगे। उन मुनीश्वरोंको देखने मात्रसे उनको अपने पूर्वजन्मका ज्ञान हुआ। पूर्वजन्मके दानका स्मरण करते हुये वे उनके पास आकर बैठे । श्रेष्ठीके घरमें चारणमुनिओंके दानानुमोदनासे उन्होंने श्रेष्ठपुण्यका उपार्जन किया। किसी समय वे दोनो कबूतर भिक्षाके लिये (धान्यकण चुनने के लिये ) अन्यग्रामको चले गये । मरकर मार्जार हुये पापी भवदेवने पूर्वजन्मके बंधे हुए वैरसे कोपयुक्त होकर उन दोनोंको मार डाला ॥ २०१-२०९ ॥ पुष्कलावती देशके विजयाई पर्वतकी दक्षिण श्रेणीमें गांधार नामक विषयमें शीरवती नामक एक सुन्दर नगर था । उसका स्वामी आदित्यगति विद्याधर था । उसकी पत्नीका नाम शशिप्रभादेवी था । पूर्वजन्ममें जो रतिवर नानक कबूतर था, वह इस दंपतीका हिरण्यवर्म नामक पुत्र हुआ ॥ २१०-२११ ॥ उसही विजयार्धकी उत्तरश्रेणीमें गौरी नामक देशके भोगपुरमें वायुरथ नामक विद्याधर राजा था। उसकी रानीका नाम स्वयंप्रभा था । रतिषणा कबूतरीको मार्जारने मारा था । वह इस रानीको प्रभावती नामक कन्या होगई । जब यह तरुणी होगई तब इसे देखकर वायुरथने मंत्रिओंको पूछा, कि इस कन्याको किसे अर्पण करना चाहिये? सर्व मंत्रियोंने मिलकर स्वयंवरविधि करना चाहिये ऐसा उत्तर दिया । राजाने शीघ्रही विद्याधरोंको उत्तम मंडपमें बुलाया । कन्याभिलाषी वे विद्याधर आये परंतु कन्याने कुछ कारणसे उनमेंसे किसीकाभी अङ्गीकार नहीं किया ॥ २१२-२१५ ॥ मातापिताओंने वह देखकर उसे जब पूछा तब उसने
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