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पाण्डवपुराणम् भेरीवं समाकर्ण्य नृपाः सर्वे रणोत्सुकाः । नटद्भटकरास्फोटचटुलारावनिष्ठुराः ॥८२ नागाः समन्तात्संनद्धाश्चेलुः प्रागचलोपमाः । संग्रामाब्धेस्तरङ्गाभास्तुरङ्गास्तु सगर्वकाः।। ८३ चक्रचीत्कारसंचारा रथाश्चेलुः सवाजिनः । चण्डकोदण्डकुन्तासिकरास्तदनु पत्तयः ॥८४ । गज विजयघोषाख्यमर्ककीर्तिः सुकीर्तिमान् । समारुह्य चचालासावकम्पननृपं प्रति ॥८५ श्रुत्वा वार्तामिमां भूप आलोच्य सचिवैःसह । अर्ककीति समादिक्षदृतं स प्राप्य तं जगौ॥८६ तवार्ककीर्ते कि युक्तमेवं सीमातिलधनम् । प्रसीद चक्रिपुत्र त्वं तन्मा कार्षीमषागमम् ॥८७ इत्युक्तमप्यशान्तं तं ज्ञात्वा प्रत्येत्य तत्तथा । आश्ववाजीगमत्सर्व दूतोऽकम्पनभूपतिम् ।।८८ शृङ्खलालिङ्गनोद्युक्तमिदानीमिव वानरम् । बदाऽनेष्ये कुमारं तं परदाराभिलाषिणम् ।।८९ इत्युक्त्वा स जयो मेघकुमारविजयार्जितम् । मेघधोषाभिधां भेरी दापयामास सत्वरम् ।।९० तच्छब्दाकर्णनात्सर्वे घूर्णितार्णवसंनिभाः । दन्तावला मदेनेवोत्तुङ्गाश्चेलुमदिष्णवः ॥९१ खनन्तः कुं स्वनन्तश्च वायुवेगाः सुवाजिनः । पूर्णसर्वायुधरथाः प्रनृत्यध्वजवाहवः ॥९२ पदातयः परं प्रीत्या पेतुस्तत्संयुगं प्रति । योषितोऽप्यभटायन्त तत्र का वर्णना परा ॥९३
गये। जिनको घोडे जोडे गये हैं, जो चक्रके चीत्कारध्वनिसहित संचार कर रहे हैं ऐसे रथ चलने लगे । रथोंके पीछे पीछे प्रचंड धनुष्य, भाले, तरवारें जिनके हाथोंमें हैं ऐसे पयादे जाने लगे ॥ ८२-८४ ॥ उत्तम कीर्तिका धारक अर्ककीर्तिकुमार विजयघोष नामक हायीपर आरूढ़ होकर अकंपन राजाके तरफ निकला ॥ ८५ ॥ इस वृत्तान्तको सुनकर अकम्पन राजाने अपने मंत्रियोंके साथ विचार कर अर्ककीर्तिके पास दूत भेजा, वह अर्ककीर्तिके पास जाकर इस प्रकार बोलने लगा- “ हे कुमार आपका यह मर्यादाका उल्लंघन करना क्या योग्य है ? आप भरत चक्रवर्तीके पुत्र हैं, आप असत्य-अन्याय मार्गका पोषण न करें। आप प्रसन्न हूजिये।' दूतके इस प्रकार कहने पर भी कुमार अशान्तही है ऐसा समझकर दूत लौटकर आया और उसने संपूर्ण वृत्तान्त अकम्पन महाराजको कहा ।। ८६-८८ ॥ परस्त्रीकी अभिलाषा करनेवाले कुमारके गलेमें लोहशृखला बाधकर बन्दरके समान मैं उसको यहां लाऊंगा, ऐसा कहकर जयकुमारने मेधकुमारोंपर विजय प्राप्त करके प्राप्त की हुई मेघघोषा नामकी भेरी तत्काल बजवाई ॥ ८९-९० ।। भेरीका शब्द सुनकर तरंगित-समुद्रके समान सब योद्धा क्षुब्ध होगये । मदोन्मत्त हाथी मानों मदहीसे ऊंचे होकर युद्धस्थलके प्रति चलने लगे। हिसनेवाले और जमीनको खरोसे खोदनेवाले उत्तम घोडे वायुवेगसे दौडने लगे । सर्वायुधोंसे भरे हुए, नृत्य कर रहे हैं ध्वजरूपी बाहु जिनके ऐसे रथ तथा पयादे अतिशय प्रीतिसे युद्धके तरफ प्रयाण करने लगे। अधिक क्या कहे उस
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