SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मणि के समान कान्ति की धारक एवं गोलाकार थी ।। १०२-१०३।। कान्ति से जाज्वल्यमान उस पृथ्वी का तीन योजन पर्यन्त भाग धूलीशाल (परकोट) से चारों ओर से वेष्टित था, जो रत्नमयी था एवं बड़ा विशाल था ।। १०४।। धूलीशाल की चारों दिशाओं में सुवर्णमयी स्तम्भों के अग्रभाग में बहुत मनोहर तोरण, मीनाकारी तथा रत्नों से अलंकृत मालाएँ लटक रही थीं, जिनसे उन स्तम्भों की अद्वितीय शोभा देखते ही बनती थी ।। १०४।। कुछ दूरी पर उस भूमि के भीतर जाकर गलियों के मध्य भाग में मानस्तम्भ विद्यमान थे जो कि सवर्णमयी थे। निचले भाग एवं बीच के भाग में तीर्थंकर की प्रतिमाओं के रहने के कारण वे पूज्य एवं पवित्र थे, ध्वजा एवं छत्र आदि से शोभायमान थे; जिनके अन्दर || म चार-चार विशाल गोपुर (सदर दरवाजे) विद्यमान हैं, ऐसे तीन प्राकारों से वेष्टित थे एवं महामनोहर जान पड़ते थे ।।१०६-१०७।। स्तम्भों तक की भूमि भागों पर प्रत्येक दिशा में चार वापियाँ थीं, जो कि मणिमयी सीढियों से || शोभायमान थीं एवं नन्दा, नन्दोत्तरा आदि उनके शुभ नाम थे ।।१०।। मानस्तम्भों की जगह से थोड़ी दूर जाकर मानस्तम्भों की भूमि को चारों ओर से घेर कर रखनेवाली एक विस्तीर्ण खाई थी, जो कि अत्यन्त निर्मल जल से भरी हुई थी एवं पवन वेग से उत्पन्न होनेवाली चंचल तंरगों से व्याप्त थी। खाई के मध्यभाग की भूमि को घेर कर रखनेवाला एक आम्रवन था, जो कि महामनोहर क्रीड़ा पर्वत एवं लता मण्डपों से युक्त था एवं समस्त ऋतुओं में खिलनेवाले महामनोहर पुष्पों से शोभायमान था ।। १०६-११०।। आम्रवन से कुछ दूर पर सबसे पहिला विशाल प्राकार था, जो कि मुक्तामाला आदि से भूषित था, अत्यन्त उन्नत था तथा सुवर्णमयी था ।।१११।। इस प्रकार की चारों दिशाओं में चार सदर दरवाजे थे, जो कि चाँदी के बने हुए थे। तीन-तीन खण्डों के थे एवं विशाल पर्वत के शिखर सरीखे जान पड़ते थे ।।११२।। हरएक सदर दरवाजे के अन्दर झाड़ी, कलश आदि मांगलिक द्रव्य एक सौ आठ-आठ शोभायमान थे ।।११३।। हर एक दरवाजे पर सौ-सौ तोरण लटक रहे थे, जो कि अत्यन्त शोभायमान जान पड़ते थे। उन द्वारों के भीतर रत्नमयी आभरणों से युक्त नौ निधियाँ जगमगा रहीं थीं ।।११४।। गोपुरों के भीतर जाकर एक विशाल वीथि (गली) थी तथा उस वीथि के दोनों पसवाड़ों में दो नाट्यशालायें थीं, जो कि रत्नयमयी स्तम्भों से शोभायमान थीं तथा तिखनी बनी हुई थीं ।।११५।। उन महावीथियों की दोनों दिशाओं में दो-दो धूपघट विद्यमान थे तथा उनसे आगे गलियों में चार मनोहर वन थे, जो कि सब ऋतुओं में होनेवाले फल तथा पुष्पों से शोभायमान थे। 44649 Jain Education Interational For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002720
Book TitleMallinatha Purana
Original Sutra AuthorSakalkirti Acharya
AuthorGajadharlal Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2002
Total Pages116
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy