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अवधि रूप तीन ज्ञान के धारक एवं तीन लोक के स्वामी पुत्र--भगवान श्रीमल्लिनाथ को जन्म दिया ।।५७-५८।। परम पावन भगवान श्री मल्लिनाथ के जन्म के माहात्म्य से आकाश से देवों के द्वारा कल्पवृक्ष के पुष्पों की विपुल वर्षा होने लगी। मन्द-मन्द शीतल सुगन्धित पवन बहने लगी, बिना बजाये एवं गम्भीर शब्द करनेवाले देवों के वाद्य बजने लगे । अकस्मात् ही देवों के आसन कम्पायमान हो गए । उनके मुकुट नम्रीभूत हो गए एवं घण्टों का गम्भीर शब्द होने लगा। इसलिए इन शुभ चिन्हों से देवों को स्पष्ट रूप से मालूम पड़ गया कि भगवान श्रीमल्लिनाथ का जन्म हो गया है।।५६-६१।। उस समय भगवान श्री मल्लिनाथ के जन्मकाल में ज्योतिषी देवों के घरों में अपने-आप सिंहनाद नाम का वाद्य यंत्र तुमूल शब्द के साथ बजा । भवनवासी देवों के भवनों में अत्यन्त गम्भीर शंख का शब्द होने लगा था । व्यन्तर देवों के घरों में भेरी नगाड़े का शब्द होने लगा था। वैमानिक देवों के आसन कम्पायमान हो गये । इनके अतिरिक्त भगवान श्रीमल्लिनाथ के जन्मकाल में अन्य भी अनेक प्रकार के आश्चर्य होने लगे थे, जिससे हर एक निकाय के इन्द्रों ने उनके जन्म-कल्याणक में सम्मिलित हुए थे ।।६२-६३।। उसके बाद सैकड़ों प्रकार के महोत्सवों के करने में लालायित सौधर्म स्वर्ग के इन्द्र को साथ लेकर चारों निकायों के समस्त इन्द्रों ने अपनी-अपनी आवश्यक वस्तुएँ अपने-अपने साथ ले लीं । अपने-अपने वाहनों पर वे सवार हो गये ।“ हे स्तुति करने योग्य भगवान ! आप सदा जयवंत रहें एवं सुदीर्घकाल जीवें । हे पूज्य ! आप फले-फूलें, वृद्धि को प्राप्त हों"--इस प्रकार उस समय बड़े जोर से कोलाहल होने लगा। अपने-अपने शरीरों के उत्तमोत्तम भूषणों की किरणों से उन्होंने समस्त दिशाएँ एवं आकाश जगमगा दिया। सैकड़ों प्रकार के वाद्यों के शब्दों से एवं मनोहर गीत, नृत्य एवं उत्साह से परिपूर्ण कार्यों द्वारा समस्त दिशाएँ तथा आकाश पूर दिया । इस प्रकार अपने-अपने आज्ञाकारी देव एवं अपनी-अपनी देवांगनाओं के साथ वे भगवान श्रीमल्लिनाथ का जन्म-कल्याणक मनाने के लिए विशाल विभूति एवं हर्ष के साथ मिथिलापुरी आकर उपस्थित हो गये ।।६४-६७।। जिस समय सौधर्म आदि इन्द्र एवं देवगण मिथिलापुरी में आ गए, | उस समय राजा कुम्भ के महल का आँगन, समस्त मिथिलापुरी मार्ग, वनप्रांत आदि में जहाँ देखो वहाँ देवांगना, देव एवं वाहन आदि की सेना ही सर्वत्र नजर आती थीं। इसलिए उस समय मिथिलापुरी में स्वर्गलोक का दृश्य दीख पड़ता था--मिथिलापुरी ही लोगों की दृष्टि में स्वर्गभूमि जान पड़ती थी ॥६८।। जिस महल के अन्दर भगवान
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