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________________ ग्रन्थकार अब सामान्यरूप से रत्नत्रय की प्रशंसा करते हैं कि यह परमपावन रत्नत्रय जीवों को समस्त प्रकार के कल्याणरूपी फलों का प्रदान करनेवाला है । अनन्त पुण्य की परम्परा का कारण है एवं इस रत्नत्रय को पालन करनेवाले पुरुषों को अविनाशी सुखसागर में मग्न होने का अवसर प्राप्त होता है । इसी अनुपम चमत्कार के धारक रत्नत्रय से जिनकी आत्मा विभूषित है, वे वचन से न कहे जानेवाले सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त सुख का अच्छी तरह रसास्वादन कर अन्त में अचिंत्य अविनाशी मोक्ष सुख को प्राप्त करते हैं; इसलिये ग्रन्थकार यह तात्विक उपदेश देते हैं कि हे मोक्षाभिलाषी जीवों ! इस प्रकार रत्नत्रय की सर्वोच्च महिमा जान कर तुम्हें चाहिये कि तुम सम्यग्दर्शनरूपी || म हार को शीघ्र ही अपने हृदय में धारण करो, ज्ञानरूपी कुण्डलों को अपने दोनों कानों में पहिनो एवं चारित्ररूपी मुकुट को अपने मस्तक पर धारण करो; क्योंकि वे सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र रूप तीनों रत्न ही मोक्षरूपी स्त्री को वश करने में कारणभूत हैं, अर्थात् इसी अद्भुत रत्नत्रय की कृपा से मोक्षरूपी लक्ष्मी वश होती है, इसी रत्नत्रय की कृपा से तपरूपी लक्ष्मी का भी संचय होता है एवं नाना प्रकार के कर्म मलों से मलिन आत्मा का निर्मलपना भी इसी रत्नत्रय के द्वारा होता है । जिस महानुभाव पुरुष के पास सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्ररूपी निर्मल अलंकार मौजूद है, उसी ज्ञानवान महानुभाव पर मोक्षरूपी स्त्री स्वयं आकर रीझती है एवं जिस प्रकार कोई खास स्त्री खास पुरुष को वरती है, उसी प्रकार मुक्तिरूपी स्त्री भी उसे स्वयं आकर वरती है। किन्तु जिनके पास यह अनुपम रत्नत्रय नहीं, वे कितना भी प्रयत्न करें, मोक्षरूपी स्त्री उनकी ओर ताक कर भी नहीं देखती ।।६७।। आजतक जिन महानुभावों ने मोक्षरूपी लक्ष्मी को प्राप्त किया है एवं अनादि अनन्त संसार में आगे जाकर उसे प्राप्त करेंगे, वह केवल इसी रत्नरूपी तप की आराधना का फल है--रत्नत्रयरूप तप के आचरण से.ही मोक्षलक्ष्मी प्राप्त हो सकती है ।।६।। आश्चर्य इस बात का है कि जिस प्रकार निर्बल होने पर भी धनवान पुरुष पर ही स्त्री आसक्त हो जाती है, जब कि बलवान होने पर भी निर्धन पुरुष पर वह नहीं रीझती; उसी प्रकार कोई जीव कितना भी निर्बल क्यों न हो यदि वह सम्यग्दर्शन आदि रत्नत्रये से विभूषित है--सम्यग्दर्शन आदि रत्न उसके पास है तो वह नियम से कालक्रम में मोक्ष को प्राप्त करता है; किन्तु जो पुरुष उक्त रत्नों से रहित है, वह कितना भी प्रचण्ड बलवान क्यों न हो, मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता ६६'समय' शब्द का अर्थ आत्मा भी है एवं शास्त्र भी है एवं ग्रन्थकार रत्नत्रय 444 १३ Jain Education international For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002720
Book TitleMallinatha Purana
Original Sutra AuthorSakalkirti Acharya
AuthorGajadharlal Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2002
Total Pages116
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size8 MB
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