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प्रथम सर्ग।
प्रच्छिन्नवानसन्ताना'चारवंशा निरंकुशाः । बन्या यत्र विराजन्ते "सुराजान इब द्विपाः ॥१३॥ शालिवप्रावृतप्रान्तपुण्डे क्षक्षेत्रसंकटः । यत्रोपशल्यकामा दुःप्रवेशविनिर्गमाः ॥१४॥ शरत्पयोधराकारंर्गोषनर्धवलीकृतम् । भीरोवस्येव विक्षेपर्यत्रारण्यं विराजते ॥१५॥ मनुल्लङ्घया महारत्नाः सुतीक्ष्णझषकोटयः । सागरानमुकुर्वन्ति शैला यत्र 'सविनुमाः ॥१६॥ नार्यो यत्र स्वसौन्दर्यपयन्ति सुरस्त्रिया। पुष्पेषोः साधनीभूतैललितैरपि विभ्रमैः ॥१७॥ विकाररहिता भूतियौवनं विनयान्वितम् । श्रुतं प्रशमसंयुक्त शौर्य क्षान्त्या विभूषितम् ॥१८॥ प्रयं। परोपकारार्थों धर्ये कर्मणि दक्षता। प्रयस्नपरता नित्यं व्रतशोलाभिरक्षणे ॥१९॥ स्वगुणाविष्कृती'लज्जा सौहार्द निळपेक्षितम् । दृश्यते चेष्टितं यस्मिन्नीदृशं वसता सताम् ॥२०॥
(विभि.कुलकम् )
गुरु से सहित होती हैं उसी प्रकार नदियां भी सत्तीर्थ-समीचीन जलावतागें- घाटों से सहित थीं ॥१२।। जहां पर जंगली हाथी उत्तम राजाओं के समान सुशोभित होते हैं क्योंकि जिसप्रकार जंगली हाथी अच्छिन्नदानसंतान-मदको प्रखण्ड धारा से युक्त होते हैं उसीप्रकार उत्तम राजा भी दान की अखण्ड धारा से सहित होते हैं । जिस प्रकार जंगली हाथी चारुवंश-पीठ की सुन्दर हड्डी से सहित होते हैं उसीप्रकार उत्तम राजा भी चारुवंश-सुन्दर अर्थात् निर्मल कुल से सहित होते हैं और जिस प्रकार जंगली हाथी निरंकुश-अंकुश के प्रहार से रहित होते हैं उसीप्रकार उत्तम राजा भी निरंकुशदूसरों के प्रतिबंध से रहित होते हैं ॥१३॥ जिस देश में ग्रामों के समीपवर्ती प्रदेश, धान्य के खेतों से घिरे हुए निकटवर्ती प्रदेशों से युक्त पौडा तथा ईख के खेतों से इतने अधिक सघनरूप से व्याप्त रहते हैं कि उनसे ग्रामों में प्रवेश करना और निकलना कष्टसाध्य होता है ॥१४।। जहां पर शरद् ऋतु के मेघों के आकार गोधन से सफेदी को प्राप्त हुअा वन ऐसा सुशोभित होता है मानों क्षीरसमुद्र के ज्वारभाटों से ही सुशोभित हो रहा हो ॥१५।। जहां पर पर्वत, समुद्रों का अनुकरण करते हैं क्योंकि जिसप्रकार पर्वत अनुल्लङ्घनीय होते हैं उसीप्रकार समुद्र भी अनुल्लङ्घनीय होते हैं । जिसप्रकार पर्वत महारत्नबड़े बड़े रत्नों से युक्त होते हैं उसीप्रकार समृद्र भी महारत्न-बड़े बड़े रत्नों से युक्त होते हैं । जिसप्रकार पर्वत सुतीक्ष्णझषकोटि-अत्यंत तीक्ष्ण संताप की संतति से युक्त होते हैं उसी प्रकार समुद्र भी अत्यन्त क्रूर करोड़ों मगरमच्छों से सहित होते हैं और जिस प्रकार पर्वत सविद् म-विविध प्रकार के वृक्षों से सहित होते हैं उसी प्रकार समुद्र भी सविद्रुम-मूगाओं से सहित होते हैं ॥१६॥ जहां पर स्त्रियां अपने सौन्दर्य के द्वारा तथा कामदेव के साधनभूत अर्थात् काम को प्रज्वलित करने वाले हावभाव विलासों के द्वारा भी देवाङ्गनाओं को लजित करती हैं ॥१०॥ विकार से रहित सम्पत्ति, विनय से सहित यौवन, प्रशमगुण से युक्त शास्त्र, शान्ति से विभूषित शूर वीरता, परोपकार
१. अखण्डदानसन्ततयः पक्षेऽविरलस्रवन्मदसन्ततयः । २. शोभनकुला: पक्षे शोभनपृष्ठास्थियुक्ताः । ३. स्वतन्त्राः पक्षे सृणिप्रहाररहिताः । ४. वनेभवाः । ५. सुनृपा। ६. प्रबालसहिताः पक्षे विविधवृक्षयुक्ताः । ७ मदनस्य । ८ स्वगुणप्रकटीकरणे। सुगुणा विःकृतौ ब. ।
* 'झषा नागबलायां स्त्री तापमत्स्याटवीषु ना' इति मेदिनी ।
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