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श्रीशांतिनाथपुराणम् यस्यानुद्गतदन्तकेसरमपि प्राप्याननाम्भोरुहं
वाचामासि चिराय मुग्धहसितव्याजेन निजितः। लक्ष्म्याकारि भुजान्तरे' विलसितं सर्वात्मना संततं
बालस्याप्यनुभावसंपदपरा तस्याभवभूमसी ॥२०॥
इत्यसगकृतौ शान्तिपुराणे जन्माभिषेकवर्णनो नाम
* त्रयोदशः सर्गः *
जिनके मुख रूपी कमल को प्राप्त कर सरस्वती सुन्दर हास्य के बहाने चिरकाल तक निश्छल भाव से सुशोभित होती रही और लक्ष्मी ने जिनके वक्षःस्थल पर निरन्तर संपूर्ण रूप से क्रीड़ा की उन शान्ति जिनेन्द्र की बाल्यावस्था में भी बहुत भारी अनिर्वचनीय प्रभुत्व रूप संपदा थी॥२०५।।
इस प्रकार असग महा कवि कृत शान्ति पुराण में जन्माभिषेक का वर्णन करने वाला तेरहवां सर्ग समाप्त हुआ ॥१३॥
SANDWIVASI.
१ वक्षसि २ विपुला ।
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