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श्रीशान्तिनाथपुराणम् कोर्तेः संपदमात्मनो नरपतिः शृण्वन्मुदा प्राविशत् प्रासादः प्रचलद्ध्वजायतकरैराकारितो वा पुरीम् ।।१५६।। इत्यसगकृतौ शान्तिपुराणे मेघरथसंभवो नाम ___ * एकादशः सर्गः *
विरुदावली को सुनते हुए हर्ष से नगरी में प्रविष्ट हुए। प्रवेश करते समय वे ऐसे जान पड़ते थे मानों नगरी के भवन अपने ऊपर फहराने वाली ध्वजा रूप लम्बे हाथों से उन्हें बुला ही रहे थे ॥१५६।।
इस प्रकार महाकवि असग द्वारा विरचित शान्तिपुराण में मेघरथ की उत्पत्ति का वर्णन करने वाला ग्यारहवां सर्ग समाप्त हुआ।
१ आहूत इव ।
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