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________________ दशमः सर्गः சு इति नत्वायुषाध्यक्षो नन्दो वाचाऽभ्यनन्दयत् ||१|| प्रथान्यदा महीनाथमनाथजनवत्ससम् । उत्पन्नमायुधागारे ' चक्रमाक्रमितु ं जगत् 1 भवतो विक्रमेणेव स्पर्द्ध या नमितद्विषा ॥२॥ तस्मिन्निवेदयत्येवं चत्रोत्पत्ति महीभुजे । इत्थमानभ्य तं दिष्टया विज्ञातोऽन्यो व्यजिज्ञपत् ||३|| घातिकर्मक्षयोद्भूतां नमिताशेषविष्टपाम् । उपायत् विमुक्तोऽपि गुरुस्ते केवल श्रियम् ॥ ४ ॥ पातुत्रिजगतां तस्य निवासात्परमेष्ठिनः । श्रद्य 'श्रीनिलयोद्यानमसूदन्वर्थ माख्यया ॥५॥ सहस्रांशु सहस्त्ररण स्पर्द्ध मानोऽपि तेजसा । व्यद्योतिष्ट सुखालोको लोकानां स हितोद्यतः || ६ || Jain Education International दशम सर्ग अथानन्तर किसी समय अनाथजनों के साथ स्नेह करने वाले राजा को नमस्कार कर शस्त्रों के अध्यक्ष नन्द ने इस प्रकार के वचनों द्वारा आनन्दित किया || १ || हे राजन् ! शत्रुओं को नम्रीभूत करने वाले आपके पराक्रम के साथ ईर्ष्या होने से ही मानो जगत् पर आक्रमण करने के लिये आयुधशाला में चक्र उत्पन्न हुआ है ||२|| जब राजा के लिये नन्द इस प्रकार चक्र की उत्पत्ति का समाचार कह रहा था तब भाग्य के द्वारा जाते हुए - भाग्यशाली किसी अन्य मनुष्य ने नमस्कार कर उससे यह निवेदन किया कि आपके पिता ने परम विरक्त होने पर भी घातिया कर्मों के क्षय से उत्पन्न होने वाली तथा समस्त जगत् को नम्रीभूत कर देने वाली केवल ज्ञान रूपी लक्ष्मी का वरण किया है। ।। ३-४।। तीनों जगत् के रक्षक उन परमेष्ठी के निवास से आज श्रीनिलय नामका उद्यान नामकी अपेक्षा सार्थक हो गया है । भावार्थ - चूकि श्रीनिलय उद्यान में वे विराजमान हैं इसलिये वह उद्यान सचमुच ही श्री लक्ष्मी का निलय - स्थान हो गया है ||५|| जो तेज के द्वारा हजारों सूर्यों के साथ स्पर्द्धा करते हुए भी सुख पूर्वक देखे जाते हैं तथा लोगों का हित करने में उद्यत हैं ऐसे वे केवली भगवान् अतिशय देदीप्यमान हो रहे हैं || ६ || लक्ष्मी के निवास के लिये जिनका शरीर नीरजीभूत - कमलरूप परिणत हो १ आयुधशालायाम् २ भाग्येन ३ एतन्नामोपवनम् ४ सार्थकम् । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002718
Book TitleShantinath Purana
Original Sutra AuthorAsag Mahakavi
AuthorHiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherLalchand Hirachand Doshi Solapur
Publication Year1977
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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