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नवमः सर्गः
१०३ यत्र 'चारपदन्यासाः प्रसन्नतरवृत्तयः । शब्दविद्या इवाभान्ति रामाः सव्र पसिद्धयः ॥१५॥ प्रासादोपनिषु तनिर्मोकशकला इव । चचला यत्र दृश्यन्ते प्रतिवीग्नि शरद्धनाः ॥१६॥ राजा तत्पुरमध्यास्त नाम्ना क्षेमकरोक्याम् । बिभ्राणः सर्वसत्स्वानां शश्वत्योमङ्करोडयाम् ॥१७॥ जातमात्रस्य यस्यापि त्रिलोकी स्म स्वयं मया । प्रापनीपद्यते सेवा तत्प्रभुत्वं किमुच्यते ॥१॥ मतिभुताबविज्ञामप्रितवामलचक्षुषा । प्रकृतिद्वितयस्यापि ज्ञाता यः संस्थितेः समम् ॥१६॥ धनुरन्यैर्युरारोपं निर्भयोऽपि सदाऽविमः। यः पुण्यजननायोऽपि सवयः - सवयोऽभवत् ॥२०॥ सोs ani देण्या कमकधित्रया । "चित्रवा सकलश्चन्द्रो यथा तरलतारया ॥२१॥ अच्युतेन्द्रस्ततोऽच्योष्ट द्वामित्वर्णवोपमम् । स तस्मिन्नतिबाहायुर्यथाभिलषितैः सुखैः ।।२२।।
प्रकार व्याकरण विद्या चारुपदन्यासा-सुन्दर शब्दों वाले न्यास ग्रन्थ से सहित है अथवा सुन्दर सुबन्त तिङन्त रूप पदों के प्रयोग से सहित है उसी प्रकार स्त्रियां भी चारुपदन्यासा-सुन्दर चरण निक्षेप से सहित हैं। जिस प्रकार व्याकरण विद्या प्रसन्नतर वृत्ति-अत्यन्त निर्दोष वृत्ति ग्रन्थ से सहित है उसी प्रकार स्त्रियां भी अत्यन्त प्रसन्न वृत्ति-व्यवहार से सहित हैं और जिस प्रकार व्याकरण विद्या सद्र प-सिद्धि-समीचीन रूप सिद्धि ग्रन्थ से सहित है उसी प्रकार स्त्रियां भी समीचीन रूप सिद्धि–सौन्दर्य साधना से सहित हैं ।।१५।। जहां आकाश में शरद् ऋतु के चञ्चल मेघ भवन रूपी शेष नाग के द्वारा छोड़ी हुई कांचली के खण्डों के समान दिखायी देते हैं ॥१६॥
उस नगर में सब जीवों का कल्याण करने वाली दया को धारण करने वाला क्षेमंकर नामका राजा रहता था ।।१७। जिसके उत्पन्न होते ही तीनों लोक स्वयं हर्ष से सेवा को प्राप्त हो जाते हैं उसका प्रभुत्व क्या कहा जाय ? ॥१८॥ जो मतिश्रुत अवधि ज्ञान के त्रिक रूपी निर्मल चक्षु के द्वारा अन्तरङ्ग बहिरङ्ग-दोनों प्रकृतियों की समीचीन स्थिति का एक साथ ज्ञाता था ॥१६॥ जो निर्भय होकर भी अन्य मनुष्यों के द्वारा कठिनाई से चढ़ाये जाने योग्य धनुष को धारण करता था और पुण्यजन-राक्षसों का स्वामी होकर भी सदय–दया सहित तथा सदय-समीचीन भाग्य से मुक्त था ॥२०॥
जिस प्रकार पूर्ण चन्द्रमा चित्रा नामक चञ्चल तारा के साथ सम्बन्ध को प्राप्त कर सुशोभित होता है उसी प्रकार वह राजा कनक चित्रा नामक रानी के साथ सम्बन्ध को प्राप्त कर सुशोभित हो रहा था ॥२१।। तदनन्तर वह अच्युतेन्द्र इच्छानुसार प्राप्त होने वाले सुखों से बाईस सागर प्रमाण आयु को व्यतीत कर वहां से च्युत हुआ ।।२२।। जब वह अच्युतेन्द्र कनक चित्रा देवी के गर्भ में आने
१ भम्दविद्यापक्षे चारूणां पदानां सुबन्ततिङन्तरूपाणान्यासो निक्षेपो यासु ताः, रामा पक्षे चारुर्मनोहरः पदन्यास: चरणनिक्षेपोयासां ताः । शब्दविद्यापक्षे न्यासपदेन न्यासग्रन्थोपि गृह्यते २ प्रसन्नतर वृत्तिाख्या दिशेषो यासां ताः स्त्रीपक्षेत्रसादगुणोपेता वृत्तिव्यवहारोयासां ताः ३ सती विद्यमाना प्रशस्ता वा रूपसिद्धि यासु ताः पक्षे सती रूपस्यसौन्दर्यस्य सिद्धिर्यासा ताः ४ चित्रानामधेयया ५ द्वाविंशतिसागरोपमम् ।
* 'यातुधानः पुण्यजनोन्न ऋतो यातुरक्षसी' इत्यमाः दययासहितः सदयः सन् अय:सुभावहोविधिर्यस्य सः ।
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