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________________ oeKKowarkarrao ५८ ] मेरु मंदर पुराण बाला होकर मोक्षमार्गी होता है। उनकी आयु ३१ सागर की ही है, इससे अधिक नहीं। ५-क्षेत्र परिवर्तन-योग स्थान, अनुभाग-अध्यवसाय, सासादन कषाय, अध्यवस्थान स्थिति स्थान ये चार स्थान के परिवर्तन क्रम पूर्वक पूर्ण होना भाव परिवर्तन काल है। इनके विशेष स्वरूप को गोम्मटसार से समझ लेना चाहिये । द्रव्य परिवर्तन का काल मनन्त है। उससे अधिक काल क्षेत्र परिवर्तन है, उससे अधिक अनन्तकाल परिवर्तन, और उससे अधिक अनन्त गुरणा परिवर्तन है। इस प्रकार परिवर्तन के काल समूह को एक परिवर्तन काल कहते हैं ।। ७ ।। नालरिईरु नांगुनरगर देवर् ताम। मालुरु भोग भूमि मक्कळ विलगु मागार ॥ मेलुर् वानवादि देवर् गळ विलंगिन् वारार् । शाल वोशानन मेलाई रैवर् सेन्नि यावार ॥७३॥ अर्थ-मनुष्य पर्याय को धारण किया हुआ जीव अपने शरीर को छोड़कर अपने २ परिणाम के अनुसार चारों गतियों को प्राप्त करता है। न्यूनाधिक परिणामों के अनुसार पंचेन्द्रिय पर्याय तथा तिर्यच गति को प्राप्त हुये जीव अपने २ परिणामानुसार पूर्वोक्त कथन के समान अनेक गतियों में जन्म लेते हैं। देव गति में जन्म धारण किया हुश्रा जीव देव पर्याय को छोड़कर मनुष्य व तिर्यंच गति को प्राप्त होता है। पीछे कहे अनुसार नारकी जीक मनुष्य व तिर्यच मति में जन्म लेता है। भावार्थ-मनुष्य पर्याय को प्राप्त हुप्रा जीव अपने धारण किये हुये शरीर को छोड़कर परिणामानुसार चारों गतियों में जन्म लेता है। अर्थात् कम व अधिक परिणामों के अनुसार पर्याय को धारण करता है। तियंच गति को प्राप्त हुश्रा जीव अपने परिणाम के अनुसार पीछे के कथन के समान तिथंच गति में जन्म लेता है। देवमति में उत्पन्न हुआ जीव अपने परिणामों के अनुसार मनुष्य व तियंच मति में पैदा होता हैं। नारकीय जीव भी. इसी प्रकार अपने २ परिणामों के अनुसार मनुष्य व तिथंच गति में पैदा होता है ।। ७३ ।। नीर् मर निलंगळावर निड नाल्वर्गयवेवर् । नीमर निलंगळ सेल्लु विलंगोडु मक्क उम्मिर ।। शीमइल विलंगु मक्कळ ती योडु वळियुमावर् । नीर्मयिन् निरिपिर् कादि नियनविलंगि दौडम् ॥७४॥ मर्थ-एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय जीव और नर्क गति के जीव तथा देवगति के जीवों में से राग रहित भोग भूमि में मनुष्य और तिथंच गति के जीव उत्पन्न नहीं होते। प्रशन-भोग भूमि में उत्पन्न होनेवाले जीव कौन से हैं ? उत्तर-कर्मभूमि तथा तिथंच गति के जीव जो उत्तम मध्यम और जघन्य पात्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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