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मेर मंदर पुराण पळप्परिय मोळि यगत लळिरप्परेंद्र बालु।
तुळक्कर बेन रुयरं दोये तोळवेळ वा ररियरे ॥६॥ अर्थ-हे भगवन् ! दीपक के प्रकाश, स्फटिक मरिण की ज्योति युक्त मन, वचन, काय ऐसी तीनों ज्योति सहित परमोदारिक शरीर की तुलना अन्य मनुष्य के शरीर की तुलना करने में मशक्य है । ऐसा प्रापके शरीर का प्रकाश है। ऐसा देखने में मानेवाला परम प्रकाश माप में रहता है । ऐसा कहते हुये चलन रहित विभावों को नाश कर स्वभाव गुणों को जानकर भक्ति करने वाले जीव इस संसार में महान् दुर्लभ है।
भावार्थ-जैसे दीपक स्फटिक मरिण में अत्यन्त प्रकाशमान होकर चारों भोर उसका प्रकाश फैल जाता है उसी प्रकार मापकी मन, वचन काय इन तीनों ज्योतियों से युक्त मापके परमोदारिक शरीर की उपमा किसी अन्य के शरीर से देने में नहीं पाती, इसलिये प्रापका शरीर भनुपम है। भात्मप्रकाश इस शरीर में मौजूद है, ऐसा जानने पर भी विभाव परिणति में मग्न होनेवाला जीव विभाव को छोड़कर स्वभाव परिणति में मग्न होकर अपने निज स्वरूप को जानने वाले जीव संसार में महान् दुर्लभ है ॥६॥
अमलमा यरुळ सुरदिट्टरिवरिये तिरमती। विमल माय विरिद नार् गुगलमै विरिपकुमे ॥ विमल माय विरिंद नाल गुरणराल मै विरिवालु।
कमल नीदुल मुने कावलिप्पा ररियरे ॥६६॥ अर्थ-विभाव से रहित सम्पूर्ण प्राणियों में दया रखने वाले आपके समान गुण किसी अन्य देव में मिलना अत्यन्त दुर्लभ है । प्रतः त्रिमूर्ति भगवम् ! प्रापका परमौदारिक भरीर अठारह दोषों से रहित होने के कारण अनन्त दर्शन, अनन्त चतुष्टय तथा अनन्त वीर्य ये चार चतुष्टय प्रापके अन्दर विशाल रूप में होते हैं । इस कारण श्रेष्ठ अनन्त चतुष्टय को प्राप्त किये भगवान् को जानने वाले १०८ कमलों पर विहार करने वाले तथा आपकी इच्छा व भक्ति करने वाले जीव बहुत दुर्लभ है।
भावार्थ-प्राचार्य ने प्रवचनसार में कहा है कि यह प्रात्मा शुद्धोपयोग के प्रभाव से स्वयम्भ तो हमा परन्त इन्द्रियों के विना ज्ञान और प्रानन्द इस प्रात्मा के किस तरह होता है? इसकी शंका दूर करते हैं कि यह अज्ञानी जीव इन्द्रिय विषयों के भोग में ही ज्ञान और भानन्द मान बैठा है । उनको चैतन्य करने के लिये निज स्वभाव से उत्पन्न हुये शान तथा सुख को दिखाते हैं । वह स्वयम्भू भगवान् प्रात्मा इन्द्रिय ज्ञान से रहित होता हुआ निज पर प्रकाशक तथा प्राकुलता रहित अपना सुख इन दोनों स्वभाव रूप परिणमता है । भगवान् कैसे हैं ? चार घातिया कर्मों को नाश किया है जिसने अर्थात् जब तक घातिया कर्म सहित बा तब तक बायोपशमिक मत्यादिज्ञान तथा चक्षुरादि दर्शन सहित था । धातिया कर्मों के नाश होते ही प्रतीन्द्रिय हमा । फिर कैसा है? मर्यादा रहित है। जिसके उत्कृष्ट बल है पति अन्तराय के दूर होने से जो अनन्त वल सहित है। फिर कैसा है ? अनन्त है ज्ञान दर्षन रूप प्रकाश जिसके अर्थात मानावरण दर्शनावरण कर्म के जाने से अनन्तशान अनन्त
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