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________________ मेरु मंदर पुराण गयो। और पुण्य के प्रभाव से अनेक स्थानों से उनकी सगाई के लिये लोग अपनी पुत्रियों को देने के कहलावे भेजने लगे। यौवनावस्था को प्राप्त हुये उपाध्याय के समान अनेक शास्त्र, तर्क, व्याकरण आदि सर्वागम का ज्ञाता हो जाने पर शुभ मुहूर्त में एक सुन्दर सुयोग्य राज कन्या के साथ राजकुमार का पाणिग्रहण संस्कार हो गया ।।५।। वंडु पूमलंदुळि मदुवैयु बदिर् । ट्रोंढवा यवनलम् परगुनाळवन् । वंडिरै वलं पुरि मणियईड्रवा । पुंडवळ वेर्करणाळ पुदल्वर पेट्रनळ ॥५५॥ अर्थ-जब पुष्प खिल जाता है तब भ्रमर उसमें रसास्वाद लेता हुआ उसमें मग्न हो जाता है । इसी प्रकार कदली फल के समान अत्यन्त सुन्दर मुख तथा रक्त वर्णावली सर्वगरण सम्पन्न स्त्रीसूख अथवा रतिसुख का अनुभव करते समय लहरों से सुशोभित समुद्र के अन्दर तरंगों के समान मोती को धारण करने वाला तथा विरोधी जनों के वक्षःस्थल में भाले के समान प्रवेश करने वाले पुत्र रत्न को उस राजकन्या ने जन्म दिया। भावार्थ-जिस प्रकार कमलपुष्प के मध्य में बैठा हा भ्रमर फल के रसास्वाद में मग्न हो जाता है उसी प्रकार कदली फल के समान अत्यन्त लाल अधर व चमकदार मुख बाली स्त्री के साथ भोग करने लगा। विविध भांति के शंख व मोतो को धारण कर विरोधी शत्रु के हृदय में प्रवेश होने वाले तेज अस्त्र के समान परम तेजस्वी पुत्र रत्न को उस स्त्री ने जन्म दिया ।।५।। मदि दलै पट्ट पोळ दिन मगिळ दुवै जयंद नेरे। निधियर तिरंदु वीसि नीदियार् सेल्लु नालुट ।। दुवैमलरशोंक मेन्नु वनत्तिडै स्वयंभुनाम । तदिशय मडयक्कंडररसनुक्करवितिट्टार् । ५६॥ अर्थ-जिस प्रकार सकलकला सम्पन्न पूर्ण चन्द्रमा को देखकर समुद्र उमड़ने लगता है उसी प्रकार होनहार उस राजकुमार को देखकर राजा के मन में अपार हर्ष हुआ। पत्रोत्पत्ति के हर्ष में राजा ने बड़े हर्षोल्लास के साथ बच्चे का नामकरण संस्कार किया तथा याचकों को भिन्न २ प्रकार के वस्त्रादि का दान देकर सन्तुष्ट किया। इस प्रकार प्रानन्दपूर्वक क्रमण. समय व्यतीत होने लगा। विविध भांति के फूलों से सुसज्जित राजा का एक उद्यान बड़ा रम्य था। उसका नाम अशोक था । उस उद्यान में भगवान श्री स्वयम्भू स्वामी का समवसरण आया। भगवान का पदापरण देखकर उद्यान का वनमाली परमानन्दित हुआ। भगवान् का समयसरण आते ही उस उद्यान के जितने भी फल-फूल थे वे सभी हरे भरे हो गये। उस उद्यान में असमय में ही फूले-फले सामग्रियों को वनमाली बड़े हर्ष के साथ राजा के पास ले जाकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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