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मेर मार पुराण
पिनिय बीळद सेंदामर पोडिमा ।
बरिणयिनुक्कनि युर मवनाईनान् ॥५२॥ अर्थ-उनके पैरों को हही तैयार किये हुये स्वर्ण के मोले की भांति सुशोभित हो रही थी। घुटने के नीचे का भाग पिंडली वा नसों से भरी हुई वत्तल के समान था । उनका परणतल रक्त कमल के समान था। इस प्रकार वह पुत्र अनेक प्रकार के अलंकारों से अलंकत. होकर मत्यन्त शोभा को प्राप्त हो रहा था ॥१२॥
दु विन्नुवरि लंघुम् दिसई। बंद तारणे पोलमडं पाळ ।। मैंदन बंदु पिरंदु जयंदनन् ।
रिद यम मेरा वळं नाळ ॥५३॥ अर्थ-चन्द्रोदय से प्रकाशमान पूर्वाचल को उदय पाकर पानेवाले नक्षत्र के समान उस राजा की पटरानी के गर्भ में द्वितीय पुत्र माया । और नवमास पूर्ण हो जाने के बाद उसके पुत्र रस्त उत्पन्न हुप्रा । उसका नामकरण संस्कार करके जयन्त नाम रक्खा गया। वह बालक पूर्ण चन्द्र के समान दिनोंदिन वृद्धि को प्राप्त हुवा मौर परम तेजस्वी व गुणों से सम्पन्न होकर प्रजाजन को मुग्ध कर लिया, जिससे सभी उसका गुणगान करने लगे ॥५३॥
पुग्णिय मुषिस कि तुळिग मैयदु मा । लागल संजयंद नहुँमर नायुळि ॥ विण्णर तिरुवनाळ वेळ वि नीर्मयार । पण मुळ्यिवोर् पाच पदिनाळ ॥१४॥
अर्थ-पूर्व जन्म में संचय किये हुये पुण्योदय से भोगोपभोग सुख तथा अनुकूल सामग्री अधिक से अधिक प्राप्त होती है। उसी प्रकार पुण्योदय से ख्याति को प्राप्त हुए जयंत कुमार ने क्रम से पौवनावस्था को प्राप्त किया । तत्पश्चात् उपासकाध्ययन. तर्क, व्याकरण, न्यायशास्त्र, नीतिशास्त्र तथा धर्मशास्त्र माद का भली भांति अध्ययन कर लिया। इस प्रकार वह सकल श.स्त्रों में पारंगत हो गया। राजकुमार के समान ही सर्वगुस्सों से सम्पन्न, संगीत कला में प्रवीण लक्ष्मी, सरस्वती को तिरस्कार करने वाली मधुर वचन बोनने बाली सुन्दरी कन्या के साथ जयन्त का विवाह संस्कार सम्पन्न हो गया।
भावार्थ-शास्त्रों में लिखा है कि पूर्वजन्म के पुण्योदय से प्राणी को सारी विभूति प्राप्त होती है । धनपाल मादि ७ भाई थे। उन्होंने सभी अनेकों प्रकार के धन्धे व्यापार मादि किये किन्तु पूर्वजन्म में किये गये पाप कर्म के उदय होने से उनकी दरिद्रता दूर न हो सकी पर जब पाठवें भाई धन्यकुमार का जन्म हुमा तब उसकी मोलनाल भूमि में गाड़ते समय ही पुण्योदय से जमीन के अन्दर से धन से भरा हुमा एक बहुत बड़ा हंडा मिल गया। इस 'प्रकार पुण्य के प्रताप से उस जयन्त कुमार का बल तेज कीतिमादि चारों दिमामों में फैल
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