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________________ मेह मंदर पुराण अर्थ-वहां की स्त्रियां कानों में कर्णाभरण को धारण किये हुये कंधों को स्पर्श करती हुयी अत्यन्त सुन्दर मालूम होती थी। उनकी भृकुटि धनुष के समान टेढ़ी श्री तथा अांखें ऐसी प्रतीत हो रही थीं कि जैसे विरहाग्नि से दग्ध कोई अपने मुख से स्वसोच्छवास निकाल रहा हो । मृगनयनी सुन्दर स्त्रियां अपने चक्षु रूपी कटाक्ष को फेंककर कामो पुरुषों को अत्यन्त चचंल व मद नेत्रों से देखती हुई उनके मनको आकर्षण करने में प्रत्यन्त निपुण थीं। उनके मुख से बीणा के समान अत्यन्त मधुर वचन निकलते थे, जिसका कि वर्णन करने में मैं असमर्थ हूँ। भावार्थ-कर्णकुण्डल को धारण किये हुये वे स्त्रियां अत्यन्त सुन्दर मालूम होती थी। उनकी भृकुटि धनुष के समान ऊपर उठी हुई थी । विरहाग्नि से दग्ध अत्यन्त प्रकाशमान भास के समान कटाक्ष बाण को छोड़कर हरिणी के समान अत्यन्त मृदुभांखों से मुख बुमा २ कर देखती हुई कामी पुरुषों के मन को आकर्षण करती थीं। ऐसी धर्मपरावरणा स्त्रियों का वर्णन कौन कर सकता है ? अर्थात् कोई नहीं ॥३५॥ कळलु मिबिलंगुम पास कमलवान् मुक्त्त काम । बळ ळमुकरण टोरन् सुळ्डार बारि॥ तेळ्ळे लि याकुपातिदव मारपेलु साल। पुळेलि तळिगळ पाटुंतामरै पैनै पोलु॥३६॥ अर्थ-प्रत्यन्त प्रिय व मधुर सम्म बोलने वाली, सुगन्धित द्रव्यों से युक्तचारों भोर सुगन्ध फैलाने वाली, कमल के फूल के समान ते मुख सुन्दर नेत्रों से युक्त स्त्रियां अमर के समान चारों ओर नाट्यशाला में नृत्य करती थीं। नृत्य करते समय उनके पावों की पैजनिया तथा उनके सुन्दर संगीत से स्त्रियां लक्ष्मी के समान अत्यन्त सुन्दर प्रतीत होती थीं उस समय की शोभा ऐसी मालूम होती थी कि मानों मंडपाला में पक्षियों को कसलाहट हो रही हो अथवा अमर गुजार कर रहे हों। भावार्थ-उस बोतलोक देश की निवासिनी पुण्यवासी स्त्रियां अत्यन्त मधुर बन्द बोसने वाली, कमल के समान विशाल नेत्र व सुन्दर मुख कमल वाली प्रमर-नार के समान मनुष्यों को पाकर्षण करने वाली थीं। उस नाट्यशाला में नृत्य करने वाली स्त्रियों के पावों में बंधी हुई पैजनियों की प्वनि मनुष्यों के मन को लुभाने वाली थी। नत्व करने वाली स्थिको मद्भुत सोभा दे रही थी। उस नाट्यशाला में भरे हये लोग संगीत करने वाली स्त्रियों के मधुर गायनों से मुग्ध होकर मानन्द से प्रत्यन्त प्रफुलित हो रहे थे ॥३॥ मारणेतेरे कुदुरेनिर्वामि या साले । शेणमादर देम्बर तकदिर का साले ॥ मारणवेनमार कोमार मंदिर शाले यादि। एलब पिर निम्बा रिपंदुबर् करिव ॥३७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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