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मेरु मंदर पुराण पलिक्करत्तलत्तिण्डु पन्दोडांडु पावैयर् । कलिक्कय लनयकरणगळ कामपंबिन्ने.न्य ।। वळ त्तनर पुरुवबिल मसक्करिणतोऽत्त वित् ।
लिळप्पनीङ्ग मारमन् पिलपिकलेयददोक्कुमे ॥३३॥ अर्थ-स्फटिक निर्मित प्रांगण में गेन्द के खेल को वहां की कुमारी स्त्रियां खेलती थीं। उन स्त्रियों की आंखें मछली की सुन्दर प्रांखों के समान परम सुशोभित हो रही थीं। स्त्रियों के चलते समय कटि की शोभा इस प्रकार प्रतीत हो रही थी कि मानों कामदेव मन्मथ वारण छोड़ रहा हो।
भावार्थ-वीतशोक नगर की सारी कुमारी स्त्रियों की चोटियां अत्यन्त सुन्दर प्रतीत हो रही थी। उनके भौंहें धनुष के समान झुकी हुई थीं। उन स्त्रियों की शोभा जब वे परस्पर में एक दूसरी को देखती थीं तब ऐसी मालूम पड़ती थी कि मानों कामदेव एकाग्रचित्त से टकटकी लगाकर देख रहा हो ।।३३।।
माले सांदेनं सुन्न के शवा मरुदु मैंदर । पोक्तवार कुळलिनार पोलिरुवन वनिसैवीदि । मालि मा मारिणयुमुवीळ द वे किंडदे तोट्र।
मेलुलाम् वान यार वोळ दि बट् किडंद दोंड्रे ॥३४॥ अर्थ-पूष्पों के हार, चन्दन, सुगन्धित तेल. चूना आदि से युक्त गलियों में व्यापारियों की दूकानें थीं। और तरुण पुरुष मस्त होकर जब उस गली से निकलते थे तब ऐसा मालूम होता था कि मानों सुन्दर स्त्रियों के केश ही लहलहा रहे हों। माला बनाने वालों के हाथ से माला बनाते समय यदि कोई पुष्प भूल से नीचे गिर जाता तो उसे कोई पुरुष नहीं उठाता था। दुकानों में जो माला व फूलों के गजरे टंगे हुये थे उनमें से जब कोई पुष्प गिरता था तो वह ऐसा प्रतीत होता था कि मानों आकाश से पुष्पवृष्टि हो रही हो ।।३४।।
भावार्थ-उस गली में फूलों के हार, चंदन, कपूर, चूना, तेल इत्यादि सुगन्धित वस्तुयें तैयार होती थीं। वहां से आने-जाने वाले नवयुवक पुरुषों के सिर के केश इस प्रकार सुशोभित होते थे कि मानों सुन्दर स्त्रियों के लम्बे बाल हों। फूलों की बड़ी २ दुकानों में मीला गूंथने वालों के पास से जब फूल की कोई छोटी कली नीचे गिर जाती थी तो उसे कोई नहीं उठा सकता था और गिरते हुये पुष्प ऐसे मालूम हो रहे थे कि मानों प्राकाश से फूलों की वर्षा हो रही हो ॥३४॥
कुळे मुगं कुरळवांगि कोड जिलैकुरवं कोलि । एळलुमि दिल गुवेर्कलंबु कोताड वारै ॥ युळयिन मेनोक्क दैदित् डळ ळतं परित्त कोळ ळ । मळलयाळ मोळिपिन बाळ के या हरेक वल्वर ॥३५॥
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