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________________ २४ ] मेरु मंदर पुराण भावार्थ-उस देश के प्रत्येक ग्राम और नगर ऐसे सुशोभित हैं कि वहां के निवासियों के मुख से कभी कटु वचन नहीं निकलते हैं । संसार से भयभीत, शुभकामना वाले, चारों प्रकार के दानों में सदैव तल्लीन, उत्तमसत्पात्रों में प्रेम, शास्त्र-स्वाध्याय में लीन रहने वाले, जिनेन्द्र भगवान् का गुणगान करने वाले तथा सुन्दर पुष्पों को धारण करने वाले वहां के नगरनिवासी होते थे ।।१६। पारिलुळ ळ वलाम पडुपयन् पोदुउमाय्। एमलिन दिडंगळेगु मिबमे पयंदु नल् । वेरिशांद मूडु पोगि मेवि याडल् पाडलोडु। वार मादर पोंड्र माड ऊगडोर साडलाम् ॥१७॥ अर्थ-वहां की जनता विशाल नगर में ऊंचे २ महलों में निवास करती हुई विपुल वैभव से सम्पन्न थी । अर्थात् वहां पर चारों ओर से सर्व प्रकार का सुख ही सुख भरा हुआ था। वहां के स्त्री-पुरुष अत्यन्त सुन्दर शरीर को धारण करने वाले होते थे। चन्दन का शरीर में लेप करके उत्तमोत्तम अलंकारों से अलंकृत होकर नृत्यमंडप में जाते समय उनके शरीर की सुगंध चारों ओर फैलती जाती थी। और वेश्या स्त्रियों के द्वारा संगीत तथा नृत्यादि करते समय इस प्रकार नगर में महल सुशोभित हो रहे थे कि मानों स्वर्ग लोक में देवांगनायें नृत्य कर रही हों। भावार्थ-- वहां के महल तथा गोपुर अत्यन्त रमणीक, सम्पन्न तथा शोभायमान दीखते थे। उस नगर के निवासी सुख-शांति सम्पन्न होते थे । अर्थात् वहां पर सामान्य रीति से सर्वथा सख ही सुख था। उस नगर में अत्यन्त सगंध से भरी हई वस्त तथा चन्द के तेल को शरीर पर लेप करके नर्तन मंडप में प्रवेश करने वाले मनुष्यों की सुगन्ध चारों ओर फैल जाती थी और नृत्य संगीत आदि खेल को खेलने वाली देवांगनाओं के समान प्रतीत होती थी। उस समय ऐसा मालूम होता था कि मानों देवगण देवलोक से नीचे नृत्य करते हुये आ रहे हों। ऊचे २ महलों से नीचे उतरते समय उनके शरीर के आभरण देदीप्यमान होकर देवांगनाओं के समान सुशोभित हो रहे थे। . सुदरत्तलं मणि सुवर् पाळगु शंबोन । लंदर तडक्क मायनेग माल नांदगम् ।। मैंदरु मैलनारु मल्गुमाड माळिगे । इंदिर विमान मिगिलि गिरुव नीरवे ॥१८॥ अर्थ-अत्यन्त सुन्दर भूमि में वहां की बनी हुई दीवारें अनेक रत्नों तथा स्फटिक मरिणयों से निर्मित थीं। उस दीवार पर पीले रंग का लेप करके सुनहरे रंग से रत्न व सोने की मालाओं के समान चित्राम बना दिये गये थे। मयूर के समान चाल वाले पुरुष व स्त्रियों के महल ऐसे सुन्दर व रमणीय बने हुये थे कि मानों देवों के सुन्दर २ विमान ही स्वर्ग से उतर कर भूमि पर पा रहे हों। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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