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________________ मेरु मंदर पुरारण २२ ] भरे हुये वृक्ष पथिक जनों को इच्छानुसार कल्पवृक्ष के समान तृप्त करते थे । इस प्रकार विदेह क्षेत्र के पवित्र भूमि का वर्णन हुआ ।। १२ ।। मदियोड मोंग नील मरिणतळत्तिरुंद वेपोर् । पोदिय विळ कमल मबल पूत्तन पौयगेएल्लाम् ॥ मदमिस करुपिन बेंडा मरेमिसे वंडिन् पाडल् । मदियन्न मुगत्ति नल्लार् बाय् पनि नेळ विधदोङ्रे ॥ १३ ॥ अर्थ - चन्द्रमा को नक्षत्र इस प्रकार घेर लेते हैं कि जैसे इन्द्र नील मरिण रत्नों के द्वारा निर्माण किया हुआ यह भूभाग ही हैं । उस भूमि में रहने वाले सरोवर के सभी कमल ऐसे दीखते थे कि चन्द्रमा में रहने वाले कालेपन के समान श्वेत वर्णके सफेद पुष्पों पर भ्रमरों के अत्यन्त सुन्दर और सरस मंकार शब्द हो रहे हों । और चन्द्रमा के समान स्त्रियों के मुख कमलों से “सा रे ग म प " ऐसे शब्द निकल रहे हों। इस प्रकार भ्रमर के शब्द सुनाई दे रहे थे। भावार्थ - चन्द्रमा के समान नक्षत्र ऐसे प्रतीत होते हैं कि जैसे इन्द्र नीलमणि के समान भूमि में खिलने वाले नील व श्वेत कमल खिले हुये हों । वह ऐसा प्रतीत हो रहा था कि चन्द्रमा में रहने वाले काले-पन कमल में अन्दर रहने वाले उड़ने वाले भ्रमर हों और अत्यन्त सुन्दर व सरस भंकार शब्द चन्द्रमुखी स्त्रियों के मुखकमल से अत्यन्त मधुर शब्द निकल रहे हों ।। १३॥ Jain Education International अनमेन कुरुगुतारानारेवंडानङ कोळि । तुन्निन पेडंगलोडम् तुरंदवु मळंत तोटू ।। मिन्नरि शिलंवि नल्लार सिल्लरि शिलंबवाडि । कण्याळ, पैलुम शालै पोंडून कयंगळ ल्लाम् ॥ १४ ॥ || विदेह क्षेत्र की उपजाऊ भूमि का वर्णन || अर्थ - अत्यन्त सुन्दर पुष्प बगीचों, वृक्षों, और कोमल लताओं में थोड़ा भा अन्तर न होता हुआ एक में एक सभी पल्लवों पर बैठे हुये कोयल पक्षी के अत्यन्त मधुर शब्द और वर्षा को बुन्दे पड़ने तथा मधुमक्खी के शहद के छत से बून्द पड़ने के समान ऊपर से गिरते हुये ऐसे मालूम होते हैं कि जैसे प्राकाश में मेघ की वृन्दे पड़ रही हों और उसके बीच अत्यन्त मधुर शब्द के समान भ्रमर गुंजार कर रहे हों। ऐसी सुन्दर वहां की भूमि है । भावार्थ-सभी तालावों और सरोवरों में हंस पक्षी, प्रत्यन्त मधुर ध्वनि करने बाले सारस पक्षी तारा नामक पक्षी, सफेद बक पक्षी, जलमुर्गी अपने २ मादियों के साथ परस्पर में प्रेम पूर्वक उस पानी में जल क्रीड़ा करते हुये कल्लोल के साथ श्रानन्द मनाते हैं । क्षरण मात्र भी यदि दोनों में से किसी का विरह हो जाय तो दोनों प्रत्यन्त दुःखी हो जाते हैं और विरहातुर होकर चारों ओर देखने लगते हैं । इसके अतिरिक्त अत्यन्त प्रकाशमान व मधुर ध्वनि करने वाली पैंजनियां अपने पावों में बांधकर स्त्रियां और अल्पवय की बाल For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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