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मेरु मंदर पुराण
[ ४८३ से अर्थात् माठ सौ पस्सी योजन से चार योजन ऊपर जाकर सत्ताईस नक्षत्र हैं। उससे चार योजन ऊपर जाकर बुध का विमान है । उससे तीन योजन ऊपर जाकर शुक्र का विमान है। उससे तोन योजन ऊपर जाकर बृहस्पति का विमान है। उससे तीन योजन ऊपर मङ्गल (अंगार) का विमान है। उससे तीन योजन ऊपर जाकर शनि का विमान है। इस प्रकार एक सौ दस योजन में अर्थात् इस भूमि से नौ सौ योजन तक ज्योतिषी देवों का निवास है । इसो को ज्योतिर्लोक कहते हैं । यह सब एक राजू में फैले हुए हैं ।।१३११।।
कोळवान तारग केकिन मेलुमा। मेळ वान् शिले युयरं देग पल्लमा ॥ वाळ नाळ जोतिडर् कंडि मूवलं । कोळ वायुग मीरारंग ळंजरे ॥१३१२॥ इरंडु नान्गु मुन्नान्गुमे ळारु मर । ट्रिरंडिनो वेळ वदामिदु वरुक्कंनु । तिरंड नद्र, मुप्पत्तिरंडुर्मु शेलु।
मिरंडि रंडर सागरत्तीविने ॥१३१३॥ अर्थ-तारागण, सूर्य और चंद्रमा के नीचे और ऊपर रहते हैं। ज्योतिष देवों की आयु एक पल्य होती है। भवनवासी और व्यंतर देवों की जघन्य आयु दस हजार वर्ष की होती है। मध्यम भूमि के ढाई द्वीप के जम्बूद्वीप में चंद्र और सूर्य दो-दो होते हैं। महालवण समुद्र में चार चंद्रमा और चार सूर्य होते हैं। धातकी खंड में बारह चंद्रमा और बारह सूर्य रहते हैं। कलोदधि समुद्र में बयालीस चंद्रमा और बयालीस सूर्य रहते हैं। पुष्कराई द्वीप में बहत्तर चंद्रमा और एक सौ बत्तीस सूर्य अढाई द्वीप में गमन करते हैं ।।१३१२॥१३१३।।
* देवलोक का वर्णन : तुरक्कत्ति नियर के सोल्बिर् शोल्लय पडलंदोरु । मिरप्प विदिरगं शेनि बंदम् किन्नगमुं मागुं ।। तिरतुळि शेरिण वंद मिरुदु नादिशयुं शेंड्र।
वरक्कदिराळि वेद नरुवदो डिरडेन ड्राने ॥१११४॥ अर्थ-स्वर्ग लोक के एक एक पटल एक एक इन्द्रक श्रेणी बद्ध विमान प्रादि के तिरेसठ पटल होते हैं। सौधर्म कल्प में प्रथम पटल के तिरेसठ तिरेसठ श्रेणीबद्ध विमान हैं।
॥१३१४॥ सोल्लिय पडलंदोरु मरो वंड, सुरुंगि चड़ । नलिशं येनुदिशै कट्टिशदोरु मरो वंडागुं ।
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