SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 541
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८४ ] मेरु मंदर पुराण विलमिळदिलंगुम शंबोन् विमारणत्तिन कनने वेंडिर् । सोलुदुं केटक सोदमोशान तोडक्क भाग ॥१३१५।। अर्थ-सौधर्म कल्प की 'दशाओं में श्रेणीबद्ध तिरेसठ विमान हैं और ऊपर जाकर एक एक कम होकर अंत के अनुत्तर पटल में एक एक श्रेणीबद्ध विमान है। अति किरणों से युक्त श्रेणीबद्ध रहने वाले विमान सौधर्म कल्प में रहने वाले श्रेणीबद्ध विमानों की संख्या के विषय में आगे वर्णन करेंगे ॥१३१५॥ इलक्क मिन्नान्गु मेळु नान्गु मुन्नानगु मेटु । मिलक्क नागिरंडिर् कागु मेलिरंडि रंडिर् किव्वा ।। रिरक्कत्तिल पादि येन्नंजाइर मारु मागि। विलक्किला विमान नान्गु नूरु मुन्नूरु मामे ॥१३१६॥ नूदि नोडुरु पत्तोंड्र मेटिम तिरयत्तिक । नूट्रि नूडेळ मागु मध्यम मुम्मई ट्रोन ॥ नूट्रि नोडोंड, मागमुपरिम मुम्मइन् कन् । नाव मोंबत्तैदा मनुदिशानुत्तरत्ते ॥१३१७॥ अर्थ-सौधर्म कल्प में बत्तीस लाख विमान हैं। ईशान कल्प में अठाईस लक्ष विमान हैं । सनत्कुमार कल्प में बारह लाख विमान हैं। महेंद्र कल्प में आठ लाख विमान हैं। ब्रह्म ब्रह्मोत्तर दोनों कल्पों में दो दो लाख अर्थात् चार लाख विमान हैं। लांतव कापिष्ठ कल्प में पचास हजार विमान हैं। शुक्र महा शुक्र में चालीस हजार विमान हैं। शतार सहस्रार कल्प में छह हजार विमान हैं। प्रानत प्राणत कल्प में चारसौ विमान हैं। पारण अच्यूत कल्य में तीन सौ विमान हैं। नीचे के तीन ग्रेवेयिक में एक सौ ग्यारह विमान हैं। मध्यम के तीन प्रैवेयिक में एक सौ नौ विमान हैं । ऊपर के तीन ग्रैवेयिक में इक्यासी विमान हैं । नवानुदिश कल्प में नौ विमान हैं। पंचागुत्तर कल्प में पांच विमान हैं ॥१३१६।१३१७।। इंदिरर सामानिकर तात्तिगर पारिडदर । कंद पालर कापरानी कर कीनर किल् विळियर् ॥ विदिरादि गळिर् पत्तु मरसर गळ कुरव रंड्रि। मंदिरर् शूदि शूळ दिरुपर कांजुगि यादि पोल्वा॥१३१८॥ अर्थ-इन्द्रसामानिक देव, त्रायस्त्रिंश देव, पारिषद, आत्मरक्ष, लोकपाल, दण्डनायक, अनीक, प्रकीर्णक, किल्बिषिक देव, माभियोग्य इस प्रकार दस जातियां प्रत्येक स्वर्ग में होती हैं, और जिस प्रकार कर्मभूमि में राजा मंत्री प्रादि होते हैं उसी प्रकार वहां देवों में भी राजा मंत्री आदि होते हैं ।।१३१८।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy