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मेरु मंदर पुराण
[ १३ प्रतीत होते हैं। इस तरह असंख्यात समुद्र द्वीपों से घेरा हुमा उसमें तिलमात्र भी कम ज्यादा नहीं और मानो महा मेरू के समान महान पर्वत को मकट के रूपमें धारण कर बैठा हो, ऐसे प्रसिद्ध जम्बू द्वीप के राजा के हृदय में अत्यन्त सुन्दर महालक्ष्मी के समान युक्त होने वाले सोने के माफिक लाल रंग वाले मेरू पर्वत से सम्बन्ध रखने वाले व मालिनी नाम से प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ देश है । वह देश संसार में अत्यंत दुर्लभ है। और उसमें रहने वाले जीव वैराग्य भावना बल से संसार के भव्य जीवों को विरक्त कराके, उस धारण किये हुए मानव शरीर के बल से, तप धारण कर सम्पूर्ण कर्मको जड़को उखाड़कर इन भव्य जीवों को संसार से उठाकर मोक्ष रूपी स्थान में रखने की सामर्थ्य को रखता है। ऐसे सामर्थ्य रखने वाले प्रसिद्धि को प्राप्त हुअा क्षेत्र है । यह विदेह क्षेत्र सीतोदा नदी के उत्तर में है ।। ।।
गंध मालिनी देशका वर्णन तिरुवेनतिगळदु शंबोन् मलइनच् सेर्दु तीर्थ । मरुविये सेल्नु गंध मालिनि एन्नु नाडु ॥ विरविला विदेह केंद्र,मुरै युळाय विदेगनामम् । मरुविय नाटुच्चियोवगै वड तडत्ति लुडे ॥७॥ ऐजिर पयरु देवर नाल्वगै कुळ प्रोडंबो। निजि सूळ दिलंगुमेळ निलत्तिर यिरुक्क वट्ट । मंजिलं पार्गळार लरिवन देळ च्चियादि ।
एंजिडा वंद नाटिन् पेरुमया रियंब वल्लार् ॥८॥ इस पवित्र गंध मालिनी देश में सदैव भगवान के पांचों कल्याण होते रहते हैं। पंच कल्याण पूजा के लिये पाने वाले भवनवासो, व्यंतर, ज्योतिषी, कल्पेन्द्र तथा स्वर्ण मयी शरीर तीनों भित्तियों से घेरा हुआ सात भूमियों से युक्त त्रिलोकीनाथ ऐसे अहंत परमेष्ठी विराजमान होने वाले रत्नाकार उस समवसरण भूमि में सुन्दर पांवों में पंजनी पहनने वाली स्त्रियां आदि उत्सव में अधिक से अधिक पाती हैं । ऐसे धर्म हमेशा मोक्ष के साधन रूप में रहने वाले गंध मालिनी देशका वर्णन कौन कर सकता है कोई नहीं।
भगवान के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण इस प्रकार पांच कल्याण होते हैं । तीर्थङ्कर भगवान स्वर्ग अथवा नरक गति से च्युत होकर उत्पन्न होते हैं। भरत, ऐरावत
और विदेह क्षेत्र में उनका आगमन होता है । अर्थात् स्वर्ग या नरक से च्युत होकर इन क्षेत्रों में उत्पन्न होते हैं। उनके गर्भावतरण के छह मास पूर्व लगातार माता के प्रांगण में स्वर्ण व रत्नों की वर्षा होती है । तथा.गर्भावतरण हो चुकने के बाद नौ मास पर्यन्त माता के आगन में सौधर्म इन्द्र की प्राज्ञा से कुवेर स्वर्ण और रत्नों की वर्षा करता है । तथा उनका नगर स्वर्णमय हो जाता है । अर्हन्त की इस समस्त संपत्ति का वर्णन महा पुराण से जानना चाहिये । इन नौ बातों का प्राश्रय लेकर प्रत्यन्त निकट श्रेष्ठ भध्य जीव महन्त भगवान की
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