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मेरु मंदर पुराण
सोन्न नल्लिरमये सुरमै तोमिला।
मन्नर् मन् रमणीय मंगलावती ॥१२३६॥ अर्थ-सीता नदी के दक्षिण तट पर रहने वाले वत्सा, सुवत्सा, महावत्सा, वत्सकावती, रम्य, सुरम्य, रमणीय, मंगलावती आदि देश रहते हैं ।।१२३६॥
परवलं पदुमै नर्पदुमै मापदं। मरुषु मप्पदुमये पदुमकावती ॥ तिरि विनर् शंकये नदिनै शादुदै ।
करैय तेनकुमुदये चरितो कान्वरिल ॥१२४०॥ अर्थ-सीतोदा नदी के दक्षिण किनारे पर, पद्म, सुपध, महापन, पद्मावती, पद्मकावती, शंख, नलिना, कुमुद, सरिता इत्यादि देश हैं ॥१२४०।।
वडत्तडत्तिन् वप्प नन्न वप्पयु । मिडरिला मा वप्प वप्पगावती ॥ सुडरुड कंदये सुगंद तोमिला।
कडलुडै कंदिल गवमालिनी ॥१२४१॥ मर्थ-सीतोदा नदी के उत्तरी किनारे पर वप्रा, सुवप्रा, महावप्रा, विप्रावती, गंधा, सुगंधा, गंधिला, गंधमालिनी आदि देश हैं ॥१२४१॥
नालु मुन् नदियिनुम् । नालु नाल्वरनुम् ॥ नालु नालिरट्टियाय ।
विदेग ताडु निडवे ॥१२४२॥ मर्थ-वहां बारह विभमा नदी, सोलह प्रकार के पर्वत मौर बत्तीस विदेह के देश हैं।
॥१२४२।। शीव इन बक्क रै। यावि याय् बलं मुरै॥ योविय बन्नादुगळ । नीदि योडु निद्रवे ॥१२४३॥
अर्थ-पहले कहे हुए कच्छ मादि वत्तीस देश सीतोबा नदी के उत्तरी किनारे से प्रारंभ होकर क्रम से प्रदक्षिणा रूप में रहते हैं ॥१२४३॥
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