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मेह मंबर पुराण सोलिये बन्नाडुगळ् । देळ्ळिय मलयुनुस् ॥ सुळे या रिरंडि न ।
नल्लकडं मारु माम् ॥१२४४॥ अर्थ-पीछे कहे हुए कच्छ मादि बत्तीस देश हैं वे एक २ विजयार्द्ध पर्वतों से उत्पन्न होने वाले दो क्षुल्लक नदियों से छह खण वाले हो गये हैं ।।१२४॥
शेविलेंदु नूरुयर दु। पूज्य कोडियायुग ॥ मिव्वगय नाटु लैंड.म।
वेम्बिनंग डोर् परे ॥१२४५॥ प्रर्थ-इस प्रकार जो बत्तीस देश हैं उनमें रहने वाले मनुष्यों की ऊंचाई पांच सौ धनुष है और पूर्व कोटि प्रायु वाले होते हैं। यह काल भेद से रहित होकर तपश्चरण करके मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं ।।१२४५॥
सुमेर नान गुग्य। नब ना नांगिनु॥ मिलै वेरु पाडि बट।
सोन सोन यावं यं ॥१२४६॥ अर्थ-चार प्रकार के मेरू चार देश में अर्थात् धातकी खंड व पुष्कराद्ध में दो २ अर्थात् चार होती हैं । जम्बूद्वीप में कहे हुए के समान ही चारों होते हैं ॥१२४६॥
प्रोडि नोंडि रट्टियाए । सेंड दीपं सागर। मेडन मलै पुरैत्तु ।
निडवा रोयंबु वाम् ॥१२४७।। भर्ष-दोनों पापस में विस्तीर्ण से युक्त एक को एक धेरै हुए, असंख्यात द्वीप असंख्यात समुद्र मानुषोत्तर पर्वत के बाह्य प्रदेश में रहने वाले तिर्यचों का तथा द्वीप समुद्रों का विवेचन करते हैं सो सुनो ॥१२४७॥
इरुत्तंदु कोडकोरि। मा मुत्तार पलंगट् ॥
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