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________________ मेद मंदर पुरारण ४५८ ] अर्थ-- पहले नरक के प्रथम पटल में दिशा में श्रेणीबद्ध उनचास बिल हैं श्रीर विदिशा में अडतालीस बिल हैं। यह प्रथम पटल में है । पीछे एक २ पटल में एक २ बिल कम होता गया है । अन्त के उनचासवें पटल में एक २ बिल है। विदिशा में नहीं है । प्रथम नरक में तेरह पटलों में सब तीस लाख बिल हैं । द्वितीय नरक में ग्यारह पटलों में पच्चीस लाख बिल हैं। तीसरे नरक में तो पटलों में पंद्रह लाख बिल हैं। चौथे नरक में सात पटलों में दस लाख बिल हैं। पांचवें नरक में पाँच पटलों में तीन लाख बिल हैं। छठे नरक में तीन पटलों में पांच कम एक लाख हैं । सातवें नरक में एक पटल में पांच ही बिल हैं। कुल मिलाकर चौरासी लाख बिल हैं ।। १२२१|| असुरर नागर पोन्नर तीवरेत् । डिसपर तीयवरुदगर, वायुवर ॥ विशै इन् मिन्नवर, मेग रागमत् । दशनिकायमां भवनर तांगळे ॥। १२२२ ॥ अर्थ - भवनवासी देवों में असुकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, द्वीपकुमार, दिक्कुमार, अग्निकुमार, उदधिकुमार, वायुकुमार, विद्युत्कुमार, मेघकुमार ये दस प्रकार के देवों के भेद हैं ।। १२२२।० प्ररुवत्तु नांगु नांगोšवत्तेळ पत्ति रंडुम । शेरवुद्र तोन्नुट्रारुं शेप्पिय वेळ पत्तारं || मरुवद्र वसुरर नागर, पोन्नर, वायुकळ मट्टै । रु वकुं वेरु नगईरं भवनंगळामे ।। १२२३ ॥ प्रथं-दोष रहित असुरकुमार के चौसठ लाख भवन हैं। नागकुमार के चौरासी लाख भवन हैं । सुपर्णकुमार के बहत्तर लाख भवन हैं, वातकुमार के छिनवे लाख भवन हैं और छह प्रकार के देवों के एक २ के छिहत्तर २ लाख हैं ।। १२२३ ।। Jain Education International भवनर तं भवनंगळ कोडि येळोडु । शिवनिय वेळुवत्तोडरंडु ल्लक्क माम् ।। वरं यशुरर् कायु वान् कड । मई र तनु वैयदोंगि नार ॥। १२२४॥ अर्थ - भवनवासी देवों के सब मिलाकर सात करोड बहत्तर लाख भवन हैं । असुर कुमार देव की उत्कृष्ट प्रायु एक सागर है, और एक शरीर की ऊंचाई पच्चीस धनुष है । ।। १२२४।। पल मूंड्रिरंडरं इरंतु मूवरं । शोलिय नागर नर, सुवरपर तीवरो ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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