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________________ मेह मंदर पुराण [ ४५७ से तीन प्रकार है। पौर नरक, तिर्यच, मनुष्य और देवगति के भेद से चार प्रकार है। ॥१२.१७॥ अंजुमाम पंजत्ति कायत्तारमा। मेंजिय कालत्तोडेळुनारगर ॥ नंजुदारि कनर रुळियर मेलव । रंजोला रिलादव रगदियार किडम् ॥१२१८॥ अर्थ-पंचास्तिकाय की अपेक्षा से लोक पांच प्रकार का है। जीव, पुद्ग, धर्म, अधर्म माकाश और काल ये छह प्रकार का है। और नरक लोक, भवनवासी लोक, मनुष्य लोक, ज्योतिष लोक, कल्पवासी लोक, अहमिंद्र लोक और सिद्ध लोक यह सात प्रकार के लोक हैं। ॥१२१८॥ नि गोदमे निरं यंग ळंजु तनिडे । पगावळ बगलमोर केइट्र वागुमे ।। मिगादोर केरुवान् मेरु वैदिडा। पगानर किरंडु मेर् भवनं पत्तुमाम् ॥१२१६॥ अर्थ-निगोद में पूर्वापर की अपेक्षा से चोडाई सात राजू है। उत्तर-दक्षिण सर्वत्र सात राजू है । इस प्रकार क्रम से घटता २ अधोलोक में पूर्वापर एक राजू , ऊपर जाकर क्रम से घटता हुआ एक राजू की ऊंचाई पर 3 राजू है अर्थात् ३ राजू है। इससे प्रागे क्रम से कम होता हुआ मध्यलोक में एक राजू रह गया ।।१२१६।। वंडर योडर पर योडार माय । निड्वोंडुरक्क मोर् कर निडवा ॥ मंडि येळ निलप्पुरै नपित्तोंव दिर । सेंड्र विदिरगत् तेंडिशैयुं शेरिणये ॥१२२०॥ अर्थ-चित्राभूमि के ऊपर ,३ राजू उत्सेध में सौधर्म ईशान कल्प है । उस पर डेढ राजू पर सनत्कुमार कल्प है। उसके ऊपर छह युगल कल्प तक प्राधा २ राजू उत्सेध है। अन्त में एक राजू उत्सेध प्रहमिंद्र लोक है। इसके अतिरिक्त सात नरक पटल प्रधोलोक में छह राजू ऊंचाई में है । सातों नरकों में उनचास पटल हैं। पाठ दिशाओं में श्रेणीबद्ध बिल हैं। और बीच में एक २ इन्द्रक बिल हैं ।।१२२०।। पारेट्टां विदिक्फि लोंडोंडा गवं विक्किलामे । लुरिट्ट सेरिणबंदम् पुरंदोंडोळि दोंड्राइ कोळ ॥ नूरिट्टाइरंगळे शमैगरें मैंदु मूवै। तेरिट्टी रैदु मूंडोंडेदिला वैदु कोळाम् ॥१२२१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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