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मेरु मंदर पुराण उल्लव ररुवकुं मायु नागर्छ । विल्लुमूवैदु मेलवर कोरैदु माम् ॥१२२५।।
अर्थ-नागकुमार देव की आयु उत्कृष्ट तीन पल्य, सुपर्ण कुमार देव की उत्कृष्ट प्रायु अढाई पल्य, अग्नि कुमार की उत्कृष्ट प्रायु दो पल्य है और शेष सब देवों की प्रायु डेढ २ पल्य है। नागकुमार देव की शरीर की ऊंचाई पंद्रह धनुष है । शेष सब देवों ऊंचाई दस २ धनुष की है ।।१२२५।।
मानव रुर विडं मंदरत्तिनं । तानडु वुडैयदु दीप सागर ॥ मूनमि लिरंडर इरंडु माय पुगे ।
तान वट्रिडै योंवत्तंदु लक्क माम् ॥१२२६।। अर्थ-मनुष्यों के रहने के स्थान जम्बूद्वीप, धातकी खंड, पृष्कराड़ ऐसे ये अढाई द्वीप हैं। इनको दो समुद्र घेरे हुए हैं। उनके नाम लवण तथा कालोदधि है। इन प्रढाई · द्वीप और दोनों समुद्रों का विस्तार पैंतालीस लाख योजन है ।।१२२६।।
पारियर म्लेंचरावार मानव ररत योर्वा । ररियर दरुम कंडम नूळ वत्ति नावार् ॥ वारियुट्टिवु तोन्नुदारु मट्टै कंडत्तुम् । शेरुन ररत्तै शेरार म्लेचराय सेप्पपट्टार ॥१२२७॥ वंड्रदाम् कालर वालर कोंबर सेवियर् शीयम् । पंड्रिमान् कुरंगु कीरि योट्टगं करडि यादि । वंडला मुगत्तर पल्ल मायुगं कादमोक्कं । तिडिडा पळत्तं मन्ने मुळ जि मरत्तुन सेार ॥१२२८।।
अर्थ-मनुष्य में प्रार्य और म्लेच्छ ऐसे दो भेद हैं । धर्म मार्ग के अनुसार चलने वाले को प्रार्य कहते हैं , और वे एक सौ सत्तर धर्म क्षेत्र कर्म भूमि के प्रार्य खंडों में उत्पन्न होते हैं। महालवण समुद्र तथा कालोदधि समुद्र के दोनों तटों पर चौवीस अंतर्वीप म्लेच्छक्षेत्र हैं। सब छियानवें क्षेत्र हैं। उनमें एक टांग वाले हरिण, घोडे, तथा सुपर, ऊंट, सिंह, वानर, रीछ प्रादि के समान मख वाले, लंबे कान वाले प्रादि नाना प्रकार के म्लेच्छ मनुष्य एक पल्य की आयु वाले रहते हैं, तथा कर्मभूमि के एक सौ सत्तर क्षेत्रों में पांच २ म्लेच्छ खंड हैं । कुल मिलाकर पाठ सौ पचास खंड हैं। उन म्लेच्छों का,शरीर दो हजार धनुष उत्सेध रहता है, और वे फल फूल और मीठी मिट्टी खाकर जीवन व्यतीत करते हैं। बे म्लेच्छ वृक्ष के कोटरों तथा गुहा प्रादि में रहते हैं ॥१२.७॥१२२८।।
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