SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 498
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेरु मंदर पुराण [४१ नरंडगं मंडलत्तिन वंदवक्कोडिइन कुप्पं ।। इरंडयं तोगुप्प कोइर कोडिपिन दोटमांगु ।। तिरंडु वंदिळियुं देवर् सित्तिर कोडन काना । मरुंडु निनं ड रैपर वैयत्तिलदो बडवि देंडे ॥११६१॥ अर्थ-इस श्रीनिलय में रहने वाली तथा चबूतरे पर लगी हुई वरण्डक ध्वजारों को वहां के देव देखकर अत्यन्त आनन्दित होते हैं । और यह कहते हैं कि ऐसी ध्वजाए जगत में और कहीं नहीं हैं ॥११६१॥ देवर वियप्पुरुक्कं शित्तिर कुंड शंदार् । कावद मिरंडु येव वायवल गळगंड़ काद। . मूवुलगत्ति नल्ल मरिण मुत्तिन वरत्ताय । कावलर् मुडिगळ् पोलुं कुड़मिय कदव मेल्लां ॥११६२।। अर्थ-उस विचित्र कूट नाम से प्रसिद्ध मंडप के अंदर बारह कोस का विस्तीर्ग तथा तीन सौ पिचहत्तर मंजिल से युक्त वह गोपुर है। उस गोपुर के द्वार का चौवट स्वर्गमयो है जो रत्नों से मोतियों से निर्मित है। वह एक कोस का विशाल होकर चक्रवर्ती के मुकुट के समान दिखता है ।।११६२।। कद काल कंदप्पट्टि कंधुगळ् वैरं नाना। विदमरिण पईड पत्ति यायिर तगत्तु पैंबो ।। निलत्त वल्लिगळिनुळ्ळा लिरुंद पत्तिरि कन् मुत्तिन् । कदलि के कंबिनं पुर् कमलंगळ् सेरिद बढ़ ळ् ॥११६३।। मर्थ-उस गोपुर के दरवाजे के किवाडों के बीच के अडवे (चौखटे) (दो पागलों के बीच का फ़ेम) रत्नों से पंक्ति युक्त खिले हुए निर्माण किये हुए थे। इस प्रकार यह एकएक हजार है । उनके बीच में सोने को लताएं तथा भिन्न २ छ. पट्टी से जकडे हुए हैं । पुनः सोने के कमलों के पुष्पों से प्रत्यन्तं सुशोभित किया है ।।११६३ । मरुविय मरगदत्तिन कोट्ट गळ् वंडुमट्ट । परुगुव पोलुं पैबोर् किं पोरि इरुंद पांगिर् ।। दिर मुदन मंगलंग सेरिंदन शेवंग माल । यरमु मनंगन् विल्लुमाइंड परंद मादो ॥११६४॥ अर्थ-उस कमल में हरे २ रत्न हैं। वे रत्न दिखने में ऐसे प्रतीत होते हैं, जैसे कमल के बीच में रहने वाले भ्रमर उसका रसास्वादन ले रहे हैं। उस द्वार में मंगलमई तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy