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________________ ४२ ] मेह मरर पुराण मुशोभित अनेक प्रकार के सोने से निर्माण किये हुए चित्र हैं ॥११६४।। पुळग, पिरयुं कवि नीलत्तिन् शवियु पोदा । रळगमु नुदलु नल्लार वदनमु मनय मोट्टिन् । ट्रळय विळताम मुत्तिन् दामंगळ वैरत्ताम् । मिळवेइन् विरि पोट्राम मिमिनित्ताम् ॥११६॥ वंबु कोंडेळुईं कुछंद मणि योळि परंद वायद । रंबोडे इरुंदु यरंद मरिणय पीडत्तुच्चि ॥ कुंवंगळिरुंद वट्रिर्द, बंगळ कोटपडादे । येवं रत्तऴ्दु दिक्क परिम माकु नि ॥११६६॥ अर्थ- उस द्वार के बिलों के नीचे व ऊपर चंद्रमा के समान हरे रत्नों से जडाई की गई है। वह दोखने में ऐसा सुशोभित होता है जैसे स्त्री के नीले रंग के केश ही हों। वहां मोती तथा वज्र के हार टंगे हुए प्रातःकाल के सूर्योदय के समय पीले रंग के समान प्रतीत होते हैं। उन द्वारों पर लगे हुए रत्न आदि का प्रकाश उस समवसरण के बीच में बडा सुंदर चमकदार प्रतीत होता है । उसमें रहने वाले स्वर्ण की पीठ पर धूपघट हैं। उनमें सदैव धूप जलती है उसकी सुगन्ध चारों ओर फैली रहती है ।।११६५।११६६।। वोदिगळगंड, कादं वेदिगै इरंड वागु । मोदिय कुंभतिप्पा लोंबदु तूबै निकुं॥ नोदिया ट्रोरणं तवधि र पत्तवत् ट्रिडै निड वोप्पार्। पोदोड़ वलिगळेदुम पोन शे पीडंगळामे ॥११६७॥ अर्थ-उस द्वार के अंदर की महावीथी की चौडाई एक कोस है । उस महावीथी के कोनों को देखने जाने के लिये दो मार्ग हैं । उस द्वार पर रहने वाले अस्सी धूपघट हैं । उसमें चारों दिशामों में पूजा करने योग्य चार बलिपीठ हैं ॥११६७॥ कोशम वैदिर गंद कुडिनै शूळ वंदु ।। मासिला पडिग पित्ति मार्बळ उयर दि रिट्टा ॥ लास पोनिर विलाद निलंगळ् पनि रंड वागि। ईशन मागणंग ळीरारिरुक्क तानिक्कुमारे ॥११६८॥ अर्थ-पंद्रह कोस से प्रदक्षिणा देकर घूम करके आने पर कलंक रहित उस भूमि में एक कोट है । उस कोट में बारह समाए हैं जिनमें इतनी जगह है कि कितने ही भव्य प्राणी वहां आकर बैठें वह स्थान कम नहीं पडता ॥११६८।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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