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________________ ४४० ] मेरु मंदर पुराण पेरिय देन्नान्गु मेट्ट, विल्लुयरं दगडू तन् हुन् । नरं यत्तन् नरैय निड वंदर नुगम दामे ॥११५७।। अर्थ-पीछे कहे हुए श्री निलय नाम के गोपुर के दो चबूतरे हैं। एक-एक चबूतरे पर रत्नों से निर्मित एक महल है। उस महल की बगल में गोल स्तूप है। उस स्तूप की बगल में छोटे बडे दो स्तप और हैं। उस महल के मध्य भाग का उत्सेध बत्तीस धनुष का है, और बड़ा स्तूप सोलह धनुष का है। उसकी चौडाई चार धनुष है। छोटा स्तूप पाठ धनुष उत्सेध वाला और चौडाई में दो धनुष प्रमाण है, और मध्यभाग का स्थान खाली है।।११५७।। निलगंनान् किरड्रो ड्रागि निड्र माकूडमागि । इलंगु मंडलं कडंद मिडै नुग भिरडं वागुं॥ मलिदु वेन् कोडिग निमंडल मुंडि नूरुं । विलंगम् मेलेलं दवन्न क्कुलात्तिनार पत्त नान्गां ।।११५८।। । अर्थ-उस चबूतरे के मध्यभाग के महल चार मंजिल के हैं। उस महल की अगल बगल में स्तूपों से ऊपर तक दो चबूतरों के समान उसका उत्सेध है। उस चबूतरे के बीच में खाली भूमि है जिसका उत्सेध दो धनुष है। उस चबूतरे की बगल में पर्वत पर उडने वाले हंस पक्षी के समान एक सौ चार श्वेत ध्वजाए हैं ।।११५८।। ईरट्टाइरमु मीरारिलक्क, कोडियेट्टुं । वारत्त येट्टार कोइन मंडल कोडिरनीटम् ॥ तेरट्टार् कोइर् कोळेत्तळत्तिन मेल वरंडगत्त । वोरिट्टिन पादि योनबा नेट्टम सेळ् दानत्ताळे ॥११५६॥ अर्थ-मोहनीय कर्म को सम्पूर्ण नाश किये हुए श्री जिनेंद्र भगवान के गोपुर में रहने वाले चबूतरे ध्वजाओं से युक्त है। वे ध्वजाए आठ करोड बारह लाख तेरह हजार हैं। वह गोपुर कैसा है? मानों बड़े-बड़े रथों का निर्माण करके खडा किया गया है। नीचे के भाग में पिचहत्तर हजार आठ सौ चौरासी वरण्डक ध्वजाएं हैं ।।११५६॥ इरंडिनो डिरंडु नूरु तलंदोरं कुरंदु सेन्नि । इरंडिनो विरंडु नूर तोग योरु कोडि नार्पत्त् ॥ तिरंडिलक्कं कनार पत्त् तोराईर् मिवटि नोडु । . वरंडग पदागै नूट नापत्तु नांगुमामे ॥११६०॥ अर्थ-अभी तक कहे हुए वरण्डक ध्वजा से ऊपर २ एक २ मंजिल में दो सौ दो कम होते २ ऊपर की मंजिल में तीन सौ पिचहत्तर ध्वजाए हैं। इस तरह सभी ध्वजाए मिलकर एक करोड बियालीस लाख इकतालीस हजार एक सौ चालीस हैं ॥११६०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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