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मेरु मंदर पुराण मेरुविन येट्टयु मेक्यि । वारणं मलै पोलवन मंडप ॥ मेर निपुल वेंडिसंयुः मिदन् ।
नेर् मुनि दोर् पोडिग नंडरी १११६।। अर्थ-उस महोदय मंडप के चारों दिशा में जिस प्रकार महामेरु पर्वत रहता है। उसी प्रकार बडे २ मंडप हैं। उन मंडपों के सामने बलिपीठ है ।।१११६।।
वल्लिनन् मरिण पोन्मय मागिय । वेल्लि पगलं वलि येदुमी ॥ देल्लि शैपिरै वन्नगर् वायीलुट् ।
शेल्लवल्लि कन् मंडप मेडुम ॥१११७॥ अर्थ-वह बलिपीठ योग्य प्रमाण से उत्सेध तथा चौडाई आदि योग्य प्रमाण से युक्त है । वह पीठ सोना और रत्नों से निर्मित की हुई है। उसकी बलिपीठ की भव्य जीव पूजा करने के लिये अंदर जाते समय सुगंधित एक लता मंडप है ।।१११७॥
पोदरा मरिण पीडत्ति नप्पुरं । वायदा वीदिये नोकिय मंडप ॥ नीदिया निधि कोक निरंदर ।
मीदल मेविहरुप्प विरळ ॥१११८॥ अर्थ-उस रत्नों से निर्माण किये हुए बलिपीठ को छोडकर आगे जाने पर एक महावीथी आती है। उसके दोनों ओर दो मंडप हैं। वे मंडप नवनिधि के अधिपति कुबेर के समान दान करने वाले ऐसे प्रतीत होते हैं ॥१११८।। ।
पाडळोडु पइंड्रिल येंपळ। कूडि नीडु नीला बल्ल मिन्नन् ॥ तोडु माडुव वच्चुर देविय ।
राडु माडग शालयप्पालवे ॥१११९॥ अर्थ-उस मंडप को छोडकर भागे की वीथी से भीतर जाते समय वहां सुन्दर २ पाभरणों को धारण किए हुए कुबेर की स्त्रियों के नृत्य करने की नाट्यशालाएं हैं। इस प्रकार वे दोनों राजकुमार उस समवसरण के वैभव को देखकर आगे बढ रहे थे ॥१११६॥
बेट्रि मुटु विदिक्कनतूवंग। कुद्र. निड्रेन वॉगि योरोचने ।
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