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मेरु मंदर पुराण पुढक्क माविट्ट मोळि याळानं पुनरं व वहिन् । तळच्चवि पोल वाई पदाग याम तरणी तन्नं ॥ मळं कैमा बेंदर वंदु मंगल मरदि नदि ।
कुळत्तेढु पोळिलं मूळ कल्याण गोपुरत्तै सारं दार् ॥१०७६।। अर्थ-जिस प्रकार हाथी को ठान में क्रम से बांध दिया और तब उस हाथी के कान जैसे हिलते रहते हैं उसी प्रकार ध्वजाएं वहां फहराती हैं। यह सम्पूर्ण ध्वजाएं ऐसी मालूम होती हैं, मानों सम्पूर्ण जनता को दान देने के लिये अपने हाथ फैलाये हुए हैं। इस प्रकार की ध्वजा भूमि को उलांघकर कल्याणतर नाम की वेदी में वे दोनों मेरु व मंदर पहुंच गये ॥१.७६।।
मुवनडु विरुदि कोश मंडरै यरैय कंड्रिट् । डुदयत्तिन मुत्ति योंगि तमरिण येत्ति येंड, नाना ॥ विदभरिण येनिंदु सेन्नि विडेंद वेन कोडिय दागि ।
मविलिन तगत्तट्टाळे मलिदं वेळ निलत्तदामे ॥१०८०॥ अर्थ-उस कल्याणतर वेदी की चौडाई नीचे तीन कोस और बीच में डेढ कोस उसके ऊपरी भाग में तीसरा हिस्सा उत्सेध होकर उदयतर और कल्याणतर का पहला उत्सेध जितना प्रमाण है उतना ही परिमाण है। जिस प्रकार सिर में सुन्दर २ रत्न मोती तथा रत्न सोने से निर्मित पाउडर (स्त्रियों के सर पर माथे पर पीछे से अगले ललाट तक) धारण करती हैं । उसी प्रकार उस कल्याणतर नाम की वेदियों की सात प्रकार के भिन्न २ रूपों से सजावट की गई थी।॥१८॥
पत्तर काद मोंगि बोर गोपुरंग नांगु। मुत्तमत्तुरक्क मेळ योत्त वेळ निलत्तवागि ।। पत्तु नामस वा मेळ भवत्तोडर् पवन काट ।
वैत कनाडि वायबल मरुगिरंतु यदामे ॥१०८१॥ अर्थ-बह स्वर्णमयी कल्याणतर गोपुर सात मंजिल की ऊंचाई में है , और पांच कोस चौडाई में है । उस गोपुर द्वार पर एक महान बना काच लगा हुआ है, जिसमेंवहां जाने वाले को सात भव तक का ब्यौरा उस काच में दीखता है। अर्थात पूर्व भव व आगे के भवों का हाल प्रत्यक्ष मालूम होता है ।।१०८१॥
उरत नामत बाप पुरत्तगतुदयं पोल । पेरुत गोपुरंग नागु पेरविले मनिय माले । तरति नार, परत्तु ताळं दुशन शन वेन्न करें। परित्त मादिशबु बोदि परवि पोलुळित निड्रे॥१०५२।।
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