SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 478
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेरु मंदर पुराण [ ४२१ अर्थ-इस प्रकार चारों दिशामों में चार कल्याणतर गोपूर हैं। उन गोपूरों के अदर सूर्य के समान अत्यन्त प्रकाशमान जयघंटा है । जिसकी ध्वनि दूर २ तक चारों दिशाओं में सुनाई देती है ।।१०८२।। उरत्त गौपुरत्तु वायवल कापव रुलग पालर् । निरैत वळ निलत्तदाय नाटक शाल इनकट । तरत्तिना निरत्त मिनिटा नडं पुरियु मादर । विरित्तुना मुरत्त देवर् मेवुमा देवि मारे ॥१०८३॥ अर्थ-उस कल्याणतर गोपुर के दोनों ओर अगल-बगल में लोकपाल नाम के देव रक्षण करते हैं। उस गोपुर में रहने वाली वीथी की अगल-बगल में सात मंजिल से युक्त नाट्य शालाए बनी हुई हैं जिनमें लोकपाल देवों की स्त्रियां बिजली की चमक के समान प्रकाशमान होती हुई नृत्य करती हैं ।।१०८३।। वडि वुड पोडत्तिप्पाल मरिणत्तिरळ् मलरं द नांगु । विडवं कन् मिक्का दिक्क येळप्पन पोंड, शित्त ॥ पडिमंगळिरुद सिद्ध पादवं पबिड पोंदु । कुडइन् मदि निंदु वोदि नांगिनुं कुलावु मिप्पाल् ॥१०८४॥ अर्थ-उस कल्याणतर गोपुर में रहने वाली वृक्षभूमि में चार दिशाओं में एक २ बलिपीठ है । उसके अंदर सिद्धायतन नाम के वृक्ष हैं । उन वृक्षों में चार शाखाएं हैं। उन एक २ शाखा में एक २ सिद्धों की प्रतिमा है। उस वृक्ष के फूलों के भगवान के ऊपर तीन छत्र हैं। वे सुन्दर प्रतीत होते हैं। उन फूलों का सुगंध तथा प्रकाश चारों दिशाओं में फैल जाती है ॥१०८४॥ अन्जुडरु विळंतूब येरिवना लयत्त सूळव।। मजुर निमिरंदु माळ तलंगळ पग्निरडं वागि । पेजंन मलै यै सूळद दविमुरव मनैय नान्गास् । इंजि गोपुरगं नार् पालुङय वान तडगं नानगम् ॥१०८५॥ अर्थ-अनन्तज्ञान को प्राप्त हुए केवली भगवान के विराजमान होने का मंदिर है। जिसको घेरे हए कल्याणतर वेदी और गोपर में रहने वाले कल्पवक्षों की वीथी में प्रत्यन्त प्रकाशमान बारह मंजिल से युक्त स्तूप हैं । जो आकाश को स्पर्श किये हुए हों ऐसे प्रतीत होते हैं । जिस प्रकार नंदीश्वर द्वीप में चारों दिशामों में अनंतगिरि दधिमुख प्रादि चार पर्वत हैं, उसी प्रकार वहां भी चार स्तूप हैं और चारों दिशाओं में चार बावडियां हैं ॥१०८५३॥ नदै भप्रै शयंदै पूरनामत्त वादि । बंद मादिक्कि नागिल वारियै तेळित्त पोळ दिल् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy